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________________ पुल्फियाओ अ. 3 863 किदिणसंकाइयगं ठवेइ 2 त्ता बेइं वड्डेइ 2 त्ता उवलेवणसंमजणं करेइ 2 त्ता दभकलसहत्थगए जेणेव गंगा महाणई तेणेव उवागच्छइ 2 त्ता गंगं महाणहं ओगाहइ 2 ता जलमजणं करेह र ता जलकिड्डे करेइ 2 त्ता जलाभिसेयं करेइ 2 त्ता आयते चोक्खे परमसुइभूए देवपिउकयकज्जे दब्भकलसहत्थगए गंगाओ महाणईओ पच्चुत्तरइ 2 त्ता जेणेव सए उड़ए तेणेव उवागच्छइ रत्ता दब्भेहि य कुसेहि य बालुयाए य वेइंरएइ रत्ता सरयं करेइ २त्ता अरणिं करेइ रत्ता सरएणं अरणिं महेइ रत्ता अग्गि पाडेइ २त्ता आगं संधुक्खेइ 2 त्ता समिहाकट्ठाई पक्खिवइ २त्ता अगिं उज्जालेइ २त्ता अग्गिस्स दाहिणे पासे सत्तंगाई समादहे। तंजहा-सकत्थं वक्कलं ठाणं,सेजभण्डं कमण्डलुं दण्डदारुं तहप्पाणं, अह ताइं समादहे // 1 // महुणा य घएण य तंदुलेहि य अगि हुणइ, चरुं. साहेइ 2 त्ता बलिवइस्सदेवं करेइ 2 त्ता अतिहिपूयं करेइ २त्ता तओ पच्छा अप्पणा आहारं आहारेइ // 99 // तए णं से सोमिले माहणरिसी दोच्चंसि टक्खमणपारणगंसि तं चेव सव्वं भाणि यव्वं जाव आहारं आहारेइ, णवरं इमं णाणत्तं-दाहिणाएं दिसाए जमे महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरवखउ सोमिलं माहणरिसिं, जाणि य तत्थ कंदाणि य जाव अणुजाणउत्तिकट्ट दाहिणं दिसिं पसरह। एवं पचत्थिमेणं वरुणे महाराया जाव पञ्चत्थिमं दिसि पसरइ। उत्तरेणं वेसमणे महाराया जाव उत्तरं दिसिं पसरइ / पुवदिसागमेणं चत्तारि विदिसाओ भाणियचाओ जाव आहारं आहारेइ // 10 // तए णं तस्स सोमिलमाहणरिसिस्स अप्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि अणिचनागरियं जागरमाणस्स अयमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था एवं खलु अहं वाणारसीए णयरीए सोमिले णामं माहणरिसि अच्चंतमाहणकुलप्पसूए, तए णं मए वयाई चिण्णाई जाव जूवा णिक्वित्ता, तए णं मए वाणारसीए जाव पुप्फारामा य जाव रोविया, तए णं मए सुबहुं लोह 0 माव घडावेत्ता जाव जेट्टपुत्तं कुडुंबे ठवेत्ता जाव जेट्टपुत्तं आपुच्छित्ता सुबहुं लोह 0 जाव गहाय मुण्डे जाव पव्वइए, पव्वइए वि य णं समाणे छटुंछट्टेणं जाव विहरामि, तं सेयं खलु ममं इयाणि कल्लं जाव जलंते बहवे तावसे दिट्ठाभटे य पुरसंगइए य परियायसंगइए य आपुच्छित्ता आसमसंसियाणि य बहूई सत्तसयाइं अणुमाणइत्ता वागलवत्थणियत्थस्स किढिणसंकाइयग हियसभण्डोवर.र.स्स कट्टमुद्दाए मुहं चित्ता उत्तरदिसाए उत्तराभिमुहस्स मह पत्थाणं पत्थावेत्तए; एवं संपेहे। २त्ता वलं जाव जलते बहवे तावसे य दिट्ठाभटे य पुव्वसंगइए य तं चेब जाव कट्ठमुद्दाए मुहं
SR No.004389
Book TitleAnangpavittha Suttani Bio Suyakhandho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1984
Total Pages746
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_jambudwipapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, agam_vrushnidasha, & agam
File Size13 MB
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