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________________ पण्णवणासुत्तं प०१० 441 माइं असंखेजगुणाई,अचरमं चरमाणि य दो वि विसेसाहियाइं;पएसट्टयाए सव्वत्थोवा अलोगस्स चरमंतपएसा,अचरमंतपएसा अणंतगुणा,चरमंतपएसा य अचरमंतपएसा य दो वि विसेसाहिया; दव्वट्ठपएसट्टयाए सव्वत्थोवे अलोगस्स एगे अचरमे, चरमाइं असंखेजगुणाई, अचरमं च चरमाणि य दो वि विसेसाहियाई, चरमंतपएसा असंखेजगुणा, अचरमंतपएसा अणंतगुणा, चरमंतपएसा य अचरमंतपएसा य दो वि विसेसाहिया // 356 // लोगालोगस्स णं भंते ! अचरमस्स य चरमाण य चरमंतपएसाण य अचरमंतपएसाण य दव्वट्टयाए पएसट्टयाए दव्वट्ठपएसट्टयाए कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा! सव्वत्थोवे लोगालोगस्स दव्वट्ठयाए एगमेगे अचरमे, लोगस्स चरमाइं असंखेजगुणाई, अलो. गस्स चरमाइं विसेसाहियाई, लोगस्स य अलोगस्स य अचरमं चरमाणि य दो वि विसेसाहियाई, पएसट्टयाए सव्वत्थोवा लोगस्स चरमंतपएसा, अलोगस्स चरमंतपएसा विसेसाहिया, लोगस्स अचरमंतपएसा असंखेजगुणा, अलोगस्स अचरमंतपएसा अणंतगुणा, लोगस्स य अलोगस्स य चरमंतपएसा य अचरमंतपएसा य दो वि विसेसाहिया / दव्वट्ठपएसट्टयाए सव्वत्थोवे लोगालोगस्स दवट्ठयाए एगमेगे अचरमे, लोगस्स चरमाइं असंखेजगुणाई, अलोगस्स चरमाइं विसेसाहियाई, लोगस्स य अलोगस्स या अचरमं चरमाणि य दो वि विसेसाहियाई, लोगस्स चरमंतपएसा असंखेजगुणा, अलोगस्स य चरमंतपएसा विसेसाहिया, लोगस्स अचरमंतपएसा असंखेजगुणा, अलोगस्स अचरमंतपएसा अणंतगुणा, लोगस्स य अलोगस्स य चरमंतपएसा य अचरमंतपएसा व दो वि विसेसाहिया, सव्वदव्वा विसेसाहिया, सव्वपएसा अणतगुणा, सव्वपजवा अणंतगुणा // 357 // परमाणुपोग्गले गं भंते ! किं चरमे 1, अचरमे 2, अवत्तव्वए 3, चरमाइं 4 अचरमाई 5, अवतव्वयाई 6, उदाहु चरमे य अचरमे य 7, उदाहु चरमे य अचरमाइं 8, उदाहुचरमाइं अचरमे य 9, उदाहु चरमाइं च अचरमाइं च 10, पढमा चउभंगी। उदाहु चरमे य अवत्तव्वए य 11, उदाहु चरमे य अवत्तव्ययाई च 12, उदाहु चरमाइं च अवत्तव्वए य 13, उदाहु चरमाइं च अवत्तव्वयाइं च 14, बीया चउभंगी / उदाहु अचरमे य अवत्तव्वए य 15, उदाहु अचरमे य अवत्तव्वयाई च 16, उदाहु अचरमाइं च अवत्तव्वए य 17, उदाहु अचरमाइं च अवत्तव्वयाइं च 18, तइया चउभंगी। उदाहु चरमे य अचरमे य अवत्तव्वए य 19,
SR No.004388
Book TitleAnangpavittha Suttani Padhamo Suyakhandho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1984
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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