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________________ जीवाजीवाभिगमे प०६ 289 संसारसमावण्णगा.जीवा पण्णत्ता // 242 // अट्ठमाणवविहपडि० समत्ता॥ णवमा दसविहा पडिवत्ती तत्थ णं जे ते एवमाहंसु-दसविहा संसारसमावण्णगा जीवा प० ते एवमाहंसु, तंजहा-पढमसमयएगिदिया अपढमसमयएगिदिया पढमसमयबेइंदिया अपढमसमयबेइंदिया जाव पढमसमयपंचिंदिया अपढमसमयपंचिंदिया, पढमसमयएगिदियस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समयं उक्को॰एक०,अपढमसमयएगिदियस्स जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं समऊणं उक्को० वावीसं वाससहस्साई समऊणाई, एवं सव्वेसिं पढमसमइयकालं जहण्णेणं एक्को समओ उक्कोसेणं एको समओ, अपढम० जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं समऊणं उक्कोसेणं जा जस्स टिंई सा समऊणा जाव पंचिंदियाणं तेत्तीसं सागरोवमाइं समऊणाई // संचिट्ठणा पढमसमइ. यस्स जहण्णेणं एक समयं उक्कोसेणं एकं समयं, अपढमसमयगाणं जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं समऊणं उक्कोसेणं एगिदियाणं वणस्सइकालो, बेइंदियतेइंदियचउरिंदियाणं संखेज्जं कालं पंचेंदियाणं सागरोवमसहम्सं साइरेगं // पढमसमयएगिदियाणं मंते ! कालओ केवइयं अंतरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं दो खुड्डागभवग्गहणाई समऊणाई उको० वणस्सइकालो, अपढम०एगिदिय० अंतरं जहण्णेणं खुड्डागं भवन्गहणं समयाहियं उक्को० दो सागरोवमसहस्साई संखेज्जवासमन्महियाई, सेसाणं सव्वेसि पढमसमइयाणं अंतरं जह० दो खुड्डाई भवग्गहणाई समऊणाई उक्को० वणस्सइकालो, अपढमसमइयाणं सेसाणं जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं समयाहियं रको० वणस्सइकालो॥पढमसमइयाणं सव्वेसिं सव्वत्थोवा पढमसमयपंचेंदिया पढम० चउरिंदिया विसेसाहिया पढम० तेइंदिया विसेसाहिया प०बेइंदिया विसेसाहिया प० एगिदिया विसेसाहिया // एवं अपढमसमइयावि णवरि अपढमसमयएगिदिया अणंतगुणा / दोण्हं अप्पबहू , सव्वत्थोवा पढमसमयएगिदिया अपढमसमयएगिंदिया अणंतगुणा सेसाणं सव्वत्थोवा पढमसमइया अपढम० असंखेजगुणा // एएसिणं भंते ! पढमसमयएगिदियाणं अपढमसमयएगिदियाणं जाव अपढमसमयपंचिंदियाण य कयरे 21 गोयमा! सव्वत्थोवा पढमसमयपंचेंदिया पढमसमयचउरिंदिया विसेसाहिया पढमसमयतेइंदिया विसेसाहिया एवं हेट्ठामुहा जाव पढमसमयएगिदिया विसेसाहिया अपढमसमयपंचेंदिया असंखेजगुणा अपढमसमयचउरिदिया विसेसाहिया जाव अपढमसमयएगिंदिया अणंतगुणा // 243 // सेत्तं दसविहा संसारसमावण्णगा जीवा
SR No.004388
Book TitleAnangpavittha Suttani Padhamo Suyakhandho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1984
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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