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________________ 164 अनंगपविट्ठसुत्ताणि चेव कंततराए चेव पियतराए चेव मणुण्णतराए चेव मणामतराए चेव वण्णेणं पण्णत्ते / तत्थ णं जे ते णीलगा तणा य मणी य तेसिणं इमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, से जहाणामए-भिंगेइ वा भिंगपत्तेइ वा चासेइ वा चासपिच्छेइ वा सुएइ वा सुयपिच्छेइ वा णीलीइ वा णीलीभेएइ वा णीलीगुलियाइवा सामाएइ वा उच्चतएइ वा वणराईइ वा हलहरवसणेइ वा मोरग्गीवाइ वा पारेवयगीवाइ वा अयसिकुसुमेइ वा अंजणकेसिगाकुसुमेइ वा णीलुप्पलेइ वा णीलासोएइ वा णीलकणवीरेइ वा णीलबंधुजीवएइ वा, भवे एयारूवे सिया ?, णो इणढे समढे, तेसि णं गीलगाणं तणाणं मणीण य एत्तो इट्टतराए चेव कंततराए चेव जाव वण्णेणं पण्णत्ते / तत्थ णं जे ते लोहियगा तणा य मणी य तेसि णं अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, से जहाणामए-ससगरुहिरेइ वा उरभरुहिरेइ वा णररुहिरेइ वा वराहरुहिरेइ वा महिसरुहिरेइ वा बालिंदगोवएइ वा बालदिवागरेई वा संझब्भरागेइ वा गुंजद्धराएइ वा जाइहिंगुलुएइ वा सिलप्पवालेइ वा पवालंकुरेइ वा लोहियक्खमणीइ वा लक्खारसएइ वा किमिरागेइ वा रत्तकंबलेइ वा चीणपिट्ठरासीइ वा जासुयणकुसुमेइ वा किंसुयकुसुमेह वा पालियायकुसुमेइ वा रत्तुप्पलेइ वा रत्तासोगेइ वा रत्तकणवीरेइ वा रत्तबंधुजीवेइ वा, भवे एयारूवे सिया ?, णो इण्डे समढे, तेसि णं लोहियगाणं तणाण य मणीण य एत्तो इतराए चेव जाव वण्णेणं पण्णत्ते / तत्थ णं जे ते हालिद्दगा तणा य मणी य तेसि णं अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, से जहाणामएचंपएइ वा चंपगच्छल्लीइ वा चपयभेएइ वा हालिद्दाइ वा हालिद्दभेए इ वा हालिद्दगुलियाइ वा हरियालेइ वा हरियालभेएइ वा हरियालगुलियाइ वा चिउरेइ वा चिउरंगरागेइ वा वरकणएइ वा वरकणगणिघसेइ वा सुवण्णसिप्पिएइ वा वरपुरिसवसणेइ वा सल्लइकुसुमेइ वा चंपगकुसुमेइ वा कुहुंडियाकुसुमेइ वा (कोरंटगदामेइ वा)तडउडाकुसुमेइ वा घोसाडियाकुसुमेइ वा सुवण्णजूहियाकुसुमेइ वा सुहरिण्णयाकुसुमेइ वा (कोरिटवरमल्लदामेइ वा)बीयगकुसुमेइ वा पीयासोएइ वा पीयकणवीरेइ वा पीयबंधुजीएइ वा, भवे एयारूवे सिया ?, णो इणढे समढे, ते णं हालिद्दा तणा यमणी य एत्तो इट्टतरा चेव जाव वण्णेणं पण्णत्ता / तत्थ णं जे ते सुकिल्लगा तणा य मणी य तेसि णं अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, से जहाणामए-अंकेइ वा संखेइ वा चंदेइ वा कुंदेइ वा कुसुमे(मुए)इ वा दयरएइ वा (दहिघणेइ वा खीरेइ वा खीरपूरेइ वा) हंसावलीइ वा कोंचावलीइ वा हारावलीइ वा बलायावलीइ वा चंदावलीइ वा सारइ
SR No.004388
Book TitleAnangpavittha Suttani Padhamo Suyakhandho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1984
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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