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________________ रायपसेणइयं अज्झथिए जाव समुप्पजित्था-'एवं खलु अहं देवाणुप्पियाणं वामं वामेणं जाव वट्टिए, तं सेयं खलु मे कलं पाउप्पभायाए रयणीए जाव तेयसा जलंते अंतेउरपरियालसद्धिं संपवुिडस्स देवाणुम्पिए वंदित्तए णमंसित्तए, एयमद्रं भुजो 2 सम्म विणएणं खामित्तए" तिकटु जामेव दिसि पाउन्भए तामेव दिसिं पडिगए // 73 // तए णं से पएसी राया कलं पाउप्पभायाए रयणीए जाव तेयसा जलंते हट्टतुट्ठ जाव हियए जहेव कणिए तहेव णिग्गच्छइ, अंतेउरपरियालसद्धिं संपखुिडे पञ्चविहेणं अभिगमेणं वंदइ णमंसइ, एयमद्रं भुजो 2 सम्मं विणएणं खामेइ / तए णं केसी कुमारसमणे पएसिस्स रण्णो सूरियकंतप्पमुहाणं देवीणं तीसे य महइमहालियाए महच्चपरिसाए जाव धम्म परिकहेइ / तए णं पएसी राया धम्म सोच्चा गिसम्म उठाए उढेई 2 त्ता केसि कुमारसमणं वंदइ णमंसइ वं० २त्ता जेणेव सेयविया णयरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए / तए णं केसी कुमारसमणे पएसिं रायं एवं वयासी-"मा णं तुमं पएसी ! पुव् िरमणिजे भवित्ता पच्छा अरमणिजे भविजासि, जहा से वणसण्डे •इ वा णट्टसाला इ वा इक्खुवाडए इ वा खलवाडए इ वा।" "कहं णं भंते ?" “जया णं वणसण्डे पत्तिए पुष्फिए फलिए हरियगरेरिजमाणे सिरिए अईव 2 उवसोभेमाणे चिट्ठइ, तया णं वणसण्डे रमणिजे भवइ / जया णं वणसण्डे णो पत्तिए णो पुफिए णो फलिए णो हरियगरेरिजमाणे णो सिरिए अईव 2 उवसोभेमाणे चिट्ठइ, तना णं जुण्णे झडे परिसडियपण्डुपत्ते सुक्करक्खे इव मिलायमाणे चिट्ठइ, तया णं वणसण्डे णो रमणिजे भवइ / जया णं णट्टसाला वि गिजइ वाइजइ णच्चिजइ हसिजइ रमिजइ, तया णं णट्टसाला रमणिज्जा भवइ / जया णं णट्टसाला णो गिजइ जाव णो रमिजइ, तया णं णट्टसाला अरमणिज्जा भवइ / जया णं इक्खुवाडे छिजइ भिजइ सिजइ पिजइ दिजइ, तया णं इक्खुवाडे रमणिजे भवइ / जया णं इक्खुवाडे णो छिजइ जाव तया णं इक्खुवाडे अरमणिजे भवइ / जया णं खलवाडे उच्छुब्भइ उडुइजइ मलइजइ मुणिजइ खजइ पिज्जइ दिजइ, तया णं खलवाडे रमणिजे भवइ / जया णं खलवाडे णो उच्छुब्भइ जाव अरमणिजे भवइ / से तेणतुणं पएसी ! एवं वुच्चइ, मा णं तुमं पएसी ! पुट्विं रमणिजे भवित्ता पच्छा अरमणिजे भविजासि जहा से वणसण्डे इ वा०।" तए णं पएसी राया केसि कुमारसमणं एवं वयासी-" णो खलु भंते ! अहं पुब्बिं रमणिज्जे भवित्ता पच्छा अरमणिजे भविस्सामि, जहा से वणसण्डे इ वा जाव खलवाडे इ वा।
SR No.004388
Book TitleAnangpavittha Suttani Padhamo Suyakhandho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1984
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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