________________ स्तेनदीक्षायां प्रायश्चित्तम् [47] सग्गाम परग्गामे सदेस परदेस अंतो चाहिं वा। दिट्ठमदिटुकोसा मज्झिम जहणे इमा सोही // 424 // मूलं छेदो छग्गुरु छल्लहु चत्तारि लहुग गुरुगा य / गुरुग लहुगो य मासो एएसिं चारणा तुइमा // 425 // सग्गामंतो दिठे उझोसे मूल छेदो अद्दिठे। वाहिं दिठे छेदो अद्दिठे होति छरगुरुगा // 426 // परगामंतो दिठे उक्कोसे छेदो छग्गुरुमदिठे। चाहिं दिठे छग्गुरु अदिठे होति छल्लहुगा // 427 // सद्देसंतो दिढे छग्गुरु अदिठे होति छल्लहुगा / पहि दिठे छल्लहुगा अद्दिठे होति छरगुरुगा 428 परदेसंतो दिठे छल्लहुगा अदिठि होंति चउगुरुगा। पहिं दिढे चउगुरुआ अद्दिष्ठे होति चउलहुगा // 429 // एवं ता उनोसे मज्झे छेदादि ठाति गुरुमासे / छग्गुरुगादि जहणणे ठायइ अंतम्मि लहुमासे / / 430 // वितियपदमुकमोइ य अहवा वीसज्जितो णरिदेणं / अद्वाण परविदेसे दिक्खा से उत्तिमठे वा // 431 // रन्नो उवरोहादिसु संबद्ध तह य दव्वजोगम्मि / अन्भुठिओ विणासाय होइ रायावकारी तु // 432 //