________________ [194] पञ्चकल्प-भाष्य एसो उ खेत्तकप्पो अहुणा वोच्छामि कालकप्पं तु। जावाउतं तु झीणं अणुपाले ताव सामण्णं // 1740 // गीतसहाओ विहरे संविग्गेहिं व जयणजुत्तो उ। असती विमग्गमाणो खेत्ते काले इमं माणं // 1741 // पंच व छ सत्त सत्ते अतिरेग वा विजोयणाणं तु। गीतत्थपादमूलं परिमग्गेज्जा अपरितंतो // 1742 // एक व दो व तिणि व उक्कोसं बारसेव वामाई / गीतत्थपादमूलं परिमग्गेज्जा अपग्निंतः // 1743 // पंच व छ सत्त सत्ते अतिरेगं वा विजायणाणं तु / संविग्गपादमूलं परिमग्गेज्जा अपरितंतो // 1744 // एक व दोवतिण्णि व उक्कोसं बारसेव वासाई। संविग्गपादमूलं परिमग्गेज्जा अपरितंतो // 1745 // संविग्गो गीयत्थो भंगचउक्के उ पढममुवसंपा। असती ततियबितिए चउत्थगंणो उ उवसंपे॥१७४६॥ उक्कमओ खलु लहुगो चउरो लहुगा चउत्थभंगंमि / जस्सट्टा उवसंपद तं णत्थि चउत्थभंगंमि // 1747 // एतसिं तु अलंभे एगो थामावहारमकरेंतो। विहरेज्ज गुणसमिद्धो अणिदाणो आरामसहाओ॥४८