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________________ सटीकश्रावकप्रज्ञप्त्याख्यप्रकरणं / [69] तेहिं कहिए भणियं सुहासियं स्ना तं च अन्नं च दिन्नं / बीयदिवसे चाणको भणइ किस ते दिन्नं राया भणइ तुम्हेहिं पसंसियंति / सो भणइ ण मे पसंसियंति सव्वारंभपव्वत्ता कहलोयं पत्तिया वेति / पच्छा ठिउ (विउ ) केत्तिया एरिसंत्ति // परपाडसंस्तवे सौराष्ट्र श्रावकः / सो दभिक्खे भिक्खएहि समं पयट्टो भत्तं से देंति अन्नया विसइयाए मओ / चीवरेण पच्छाइओ अविसुद्धोहिणा पासणं भिखुगाणं दिव्वबाहाए आहारदाणं / सावगाणं खिंसा / जुगपहाणाण कहणं विराहियगुणो त्ति आलोयणं नमोकारपटणं पडिबोहो केत्तिया एरिसन्ति // अन्ने वि य अइयारा आइसद्देण सूइया इत्थ / साहमिअणुववृहणमथिरीकरणाइया ते उ // 14 // [अन्येऽपि चातिचारा आदिशब्देन सूचिता अत्र / साधर्मिकानुपबृंहणास्थिरीकरणादयस्ते तु // 94 // ] अन्येऽपि चातिचारा आदिशब्देन सूचिता अत्र / अत्रेति सम्यक्त्वाधिकारे सम्यत्तस्सइयारा (86) इत्यादिद्वारगाथायामादिशब्देनोल्लिङ्गिता इत्यर्थः / समानधार्मिकानुप. हणास्थिरीकरणादयस्ते तु / अनुस्वारोऽलाक्षणिकः // समा
SR No.004383
Book TitleShravak Pragnpti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendravijay
PublisherSanskar Sahitya Sadan
Publication Year1972
Total Pages246
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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