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________________ धार्मिक-वहीवट विचार तखती रूपमें नोंध देरासरके मुख्य स्थल पर रखनी होंगी, जिसे किसीको गैरसमझ न होने पाये / __ प्रश्न यह है कि क्या ऐसा किया जाय ? मुझे महसूस होता है कि उपर निर्दिष्ट परिस्थितिमें ऐसा करना उचित होगा / भले ही वह जिनालय स्वद्रव्य निर्मित न कहा जाय, लेकिन उसके बदलेमें अनेक संघोकी देवद्रव्यकी लोन भरपाई हो जानेका और साधारण खातेमेंसे संपन्न होनेवाले कार्य पर हो जानेका लाभ सर्वोत्कृष्ट है / अन्यथा ऐसी स्थिति उत्पन्न होने पर, तत्कालीन गीतार्थ गुरुके सामने सारी बातें पेश कर, उनसे मार्गदर्शन प्राप्त करना ही अधिक उचित माना जाय / प्रश्न : (31) देवद्रव्यकी रकम बैंकमें जमा कराकर हिंसादिके कार्यमें उपयोग करानेकी अपेक्षा, उस रकमका उपयोग जमीनकी खरीदीमें करना उचित नहीं ? ___ उत्तर :- अवश्य उचित ही है, लेकिन उस जमीन पर देरासरका ही निर्माण होना चाहिए अथवा भविष्यमें भावोंमें बढौतरी हो और उस जमीनकी बिक्री करनी पडे तो उस रकमको देवद्रव्यके. खातेमें जमा करानी चाहिए / उपरान्त, जमीनकी बिक्री करना, अब बांये हाथका खेल नहीं रहा, चेरिटी कमिशनरकी मंजूरी लेनी पडती है, अखबारोमें विज्ञापन देना पड़ता है, ऐसी कई झंझटे हैं, जिनमें फँस जानेकी पूरी संभावना फिर भी, बैंकमें रकम रहे, उसकी अपेक्षा इस तरह हिंसाकी अनुमोदना न हो और बिक्री होने पर सूदसे भी ज्यादा रकम प्राप्त हो, ये लाभ तो है ही / लेकिन यह सब करनेकी अपेक्षा जहाँ जीर्णोद्वारादिमें रकमकी आवश्यकता हो, वहीं ट्रस्टी लोग रकम क्यों जमा न कराये ? उस रकमके प्रति बहुत ज्यादा ममता क्यों रखी जाय ? आँखोके सामने बैल भूखों मर रहा हो, फिर भी जीवदयाकी रकममेंसे उसे घास खरीदकर डाला न जाय ? रकमको केवल जमा ही रखी जाय, यह नितांत पागलपन ही है ! ऐसा ही इस विषयमें क्यों किया जाय ?
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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