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________________ धार्मिक-वहीवट विचार (चेरिटी कमिशनरके कार्यालयमें) पंजीकृत कराना फरजियात है और ऐसे रजिस्टर पंजीकृत ट्रस्टोंकी रकम सरकारी बैंकों और सरकारमान्य कुछ कंपनियों में जमा करना फरजियात होनेसे सारी रकम बैंक आदिमें रखनी पड़ती है। इस प्रकार साहुकारोंको ऐसी रकम कर्जके रूपमें दी नहीं जाती / उपरान्त, अब तो उसमें भी खतरा बन रहा है; क्योंकि किसी भी समय समृद्ध पीढियाँ भी ऊठ जाती है - अदृश्य हो जाती हैं / जो खानगी सहकारी बैंक होती हैं, उन्हें सरकारी मान्यता तो मिलती है / अत: यदि जैनलोगोंकी ऐसी बैंक शुरू हों तो उनमें धार्मिक द्रव्यकी रकम रखी जा सके / ऐसा होनेसे हिंसक कार्यों में इस रकमका दुरुपयोग होनेकी संभावना न रहे / लेकिन लाख रूपयोंका सवाल तो यह है कि यदि ये सहकारी बैंक भी दिवाला निकाले तो सारी रकम गँवानी पडे / जब तक ऐसे सहकारी बैंकोंके नियामक सज्जन लोग हों, तब तक तो समस्या नहीं बन पाती; लेकिन नये चुनावमें नये पीढी के लोग पदारूढ हो और उनकी सज्जनता शंकास्पद हो, तो पैसे गँवाने की संभावना ज्यादा रहती है। सरकारी बैंकोंमें ऐसा भयस्थान नहीं होता / अत एव सहकारी जैन बैंकोंमें भी. धार्मिक द्रव्योंकी रकम जमा करनेका साहस धार्मिकं ट्रस्टोंके ट्रस्टी नहीं करते / इस प्रकार रकम जमा करानेके चारों ओर के द्वार बंध होनेसे, केवल सरकारी बैंकोंमें ही रकम जमा करनेके लिए विवशता होती है और ऐसा होने पर देवद्रव्यकी संपत्ति, मच्छीमारी, नर्मदा-बाँध, उद्योग आदि अति हिंसक कार्यों में उपयोगमें लायी जाती है / यह अत्यन्त आघातजनक घटना है। ___ अब क्या किया जाय ? इसका एक ही श्रेष्ठ उपाय है कि जितना शक्य हो, उतना जिस-तिस रकमका, जिस-तिस कार्यों में उपयोग कर दिया जाय / देवद्रव्यकी सारी रकम जीर्णोद्धारके या नूतन जैनमंदिर - निर्माणके कार्यों में उपयोगमें ली जाय / जीवदयाकी सारी रकम, उसी खातेमें भेज दी जाय / इस प्रकार इन दो खातोंकी रकमको शून्य कर दें / देवद्रव्यका खाता तो कामधेनु गाय-सा है / जब जितनी चाहे, उतनी रकम मिलनेवाली ही है / उसकी आमदानी भी लगातार बनी रहती है / देवद्रव्यादिकी रकमको (जीवदयाकी नहीं) सोने-चांदीके रूपमें ही जमा रखें / भले ही उसका सूद न मिले; लेकिन हिंसक मार्गों द्वारा सूद लेने पर रोकथाम लगे / उपरान्त, सोना आदिकी किंमत हमेशा बढती ही रहेगी; अत: उसमें द्रव्यहानिकी कोई गुंजाईश ही नहीं /
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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