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________________ चौदह क्षेत्रोंका विवरण है / वह कभी आमदनी करने-करानेवाली संस्था नहीं है / अतः प्रतिदिन खर्चके लिए हजारों रूपये तैयार रखने पडते हैं / संनिष्ठ कार्यकर भी, फंड एकत्र करते करते थक जायँ / इसी कारण जानवरोंको कम चारा देने पर वे भूखे रहकर आखिर मृत्युके शरण होते हैं / ऐसा न हो उसकी सावधानी कार्यवाहकोंको रखनी चाहिए / __पांजरापोलमें आमदनी हो, उसके लिए दूधार गायोंकी गौशाला बनाने की इच्छा संचालक कभी न करें / ऐसा होने पर भेड-बकरियाँ, भंड, हिरन, साँप आदिकी रक्षा करनेकी संपूर्णतया उपेक्षा होगी / जैनोंका महाजन ऐसा पक्षीय विचार कभी न करें / अलग गौशाला खोलनी हो तो बात अलग है / ___इतना शक्य होगा कि पांजरापोलों के पास यदि फाजिल जमीन हो तो उसका बीड हो सकता है / उसमें घासचारका उत्पादन किया जाय, जिससे होनेवाली आमदनीसे पांजरापोलको निभानेमें खूब उपयोगी सिद्ध हो / शायद हमेशाके लिए पांजरापोल स्वावलंबी बन जाय / / बीमार होनेवाले जानवरोंके लिए, प्रत्येक पांजरापोलके पास पशु-डाक्टर होना अत्यंत आवश्यक है / जानवरोंकी अच्छीसे अच्छी चिकित्साका ज्ञान उसे होना जरूरी है। कमजोर जानवर जैसे तगडे होते जाय वैसे बोन्ड लेकर पूर्णतया विश्वासके साथ अच्छे किसानोंको उन्हें सौंप दिये जायँ, तो उतनी जिम्मेवारी कम हो और नये जानवरको लेनेकी क्षमता भी प्राप्त हो / . भारत सरकार ऐसी पांजरापोलको लंबे अरसे तक सहायता देकर जीने देगी या नहीं? यह समस्या है / महाजनोंके अलावा, यह उत्तरदायित्व निभाना किसी के लिए भी संभव नहीं। ___अल्पसंख्यक जैनकौम, भारतकी सुखीसंपन्न कौम है तो उसके दो कारण हैं.। पांजरापोलोंमें नि:स्वार्थभावसे प्राणीरक्षा और मंदिर-मंदिरमें भारी संख्यामें जिनेश्वर देवकी पूंजा। जीवदया, जिनशासनकी कुलदेवी है / अनुकंपाकी रकममें वृद्धि हो तो, उसका उपयोग जीवदयामें किया जाय, लेकिन जीवदया रकम अनुकंपामें उपयुक्त नहीं हो सकती; क्योंकि 'मानव' बड़ा है / जानवर साधारण है / छोटोंकी रक्ष बडोंको करनी चाहिए / जो धार्मिक द्रव्यका संचालक बने, उसे इन सभी बातोंका गहराई से अभ्यास करना चाहिए। बा.व.-४
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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