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________________ ____धार्मिक-वहीवट विचार आदि चीजें, प्रभुको चढाने मात्रसे देवद्रव्य नहीं बन जाता / उपरान्त, देरासरमें जाते समय, जेबमें गलतीसे कोई दवा आदि चीजें रह जाय तो वे देवद्रव्य होकर उपयोग करनेमें निषिद्ध-त्याज्य नहीं बन जातीं / फिर भी, व्यवहारशुद्धिके लिए उनका उपयोग करना उचित नहीं। ' संघ हस्तकके रथयात्रादि वरघोडोंमें रथमें बैठना, भगवानकी पालकी उठाना, भगवानकी स्थापना करना, सारथि बनना, चम्मर लेकर बैठना आदि जिनभक्ति निमित्त उछामनी, तथा हाथी, घोडागाडी आदि मूसल (सांबेला) संबंधी उछामनियोंमें से रथ, पालकी आदिके नकरे एवं बेंड और हाथी, घोडागाडी आदि उन उन विभिन्न सांबेलों (मूसलों)का खर्च कर सकते हैं / बाकी बची रकम देवद्रव्यमें जमा की जाय / लेकिन वरघोडेमें आगमकी गाडी या ज्ञान के निमित्त होनेवाली उछामनियोंमेंसे तत्संबंधी गाडी आदिका खर्च बाद कर, बाकी बची रकम ज्ञान खातेमें जमा करानी चाहिए / उपरान्त, कुमारपाल राजा, शालिभद्र, विक्रमराजा, कनक श्री (धर्मचक्र तपमें), जावडशा आदि बनकर हाथी, घोडागाडी आदिमें बैठने की उछामनियोंमेंसे भी तत्संबंधी खर्च बादकर बाकी रकम श्रावक-श्राविका क्षेत्रमें अथवा साधारण (सात क्षेत्र) खातेमें उपयोगमें ली जा सकती है। हाँ, कुमारपाल महाराजाकी आरतीसे संबद्ध (उनके महामंत्री, सेनापति आदि) उछामनी का सारा द्रव्य, देवद्रव्यमें जमा किया जाय, लेकिन उस कुमारपाल आदिके ललाटमें तिलक करनेका घी, सात क्षेत्रके साधारणमें लिया जाय / जिनप्रतिमा और जिनमंदिर (1 + 2) जिस मूर्ति की अंजनशलाका हुई नहीं, उसकी अंजनशलाका कराने के लिए जो घीकी बोली हो, उसे जिनप्रतिमा खातेमें जमा किया जाय / इस रकमका उपयोग नयी जिनप्रतिमाको भरानेमें किया जाय तथा लेप, आभूषण और पूजा की सामग्री आदिमें किया जाय / पहले के जमाने में जिनमंदिरोंका निर्माण श्रीमंत लोग प्रायःस्वद्रव्यसे ही करते थे, लेकिन आज इस खातेमें आनेवाली देवद्रव्यकी रकम नूतन जिनमंदिरोमें भी बिना विरोध उपयोगमें लायी जा रही है / इस प्रकारमें हालमें स्वद्रव्यके बजाय देवद्रव्य से भी मंदिर बन रहे हैं और सभी उनमें पूजा-पाठादि करते हैं / अगर देवद्रव्य से बने जिनमंदिरोंमें पूजा हो सकती है तो जिनेश्वरदेवकी पूजा स्वद्र्व्यसे ही करनी चाहिए, ऐसे आत्यन्तिक आग्रह को क्यों माना जाय? यदि परद्रव्य से निकलनेवाले
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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