SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चौदह क्षेत्रोंका विवरण इस रकममेंसे जिनके अंगोके आभूषण आदि बनाये जा सके; लेकिन जिनपूजाके साधन आदिकी खरीदी नहीं की जा सकती है / हां, इस रकममें बढावा हो तो, उसका उपयोग जिनमंदिरके जीर्णोद्धार आदिमें किया जा सकता है / कल्पित (चरित ) देवद्रव्य जिनमंदिके निभावके लिए कल्पित (कायमी निधि) तथा जिनभक्ति निमित्त जो भी उछामनी आदि शास्त्रीय विधि-रीति की जाय, उससे उत्पन्न जो द्रव्य हो, उसे कल्पित देवद्रव्य कहा जाता है / भूतकालमें सुश्रावक, स्वद्रव्यसे जिनमंदिरोंका निर्माण करते थे। उस समय वे लोग जिनमंदिरके चौकीदारको वेतन, अष्टप्रकारी पूजाकी सामग्रीकी तमाम चीजें नियमित उपलब्ध होती रहे, उसके लिए दानवीर निभावरूपमें रकम दानमें देते थे / जो कायमी बनी रहती और उसके व्याजमें मंदिरका निर्वाह (निभाव) हमेशाके लिए चलता रहता था / यह रकम कल्पित देवद्रव्यमें जमा होती है। . उपरान्त, हालमें भी परंपरा अनुसार सैंकडों वर्षों से प्रचलित स्वप्न, संघमालअंजनशलाका, प्रतिष्ठादि, आरती, मंगलदीप, प्रथम प्रक्षालपूजा, केसरपूजा, पुष्पपूजा आदिकी उछामनी, उपाधानकी मालकी उछामनी, नकरा, नाण के नकरे आदि सभीका समावेश, कल्पित देवद्रव्यमें होता है; क्योंकि ये सारी उछामनियाँ भी जिनभक्ति निमित्त श्रावकों द्वारा आचारमें लायी गयी हैं। . इससे हम यह कह सकते हैं की स्वप्नादिककी उछामनी या उपाधानकी मालकी रकम देवद्रव्य तो है ही, लेकिन वह देवद्रव्य अर्थात् पूजा (अष्टप्रकारी पूजाके वार्षिक चढावे आदि स्वरूप) या निर्माल्य देवद्रव्य नहीं, परन्तु कल्पित देवद्रव्य है / इस रकमका उपयोग देरासरजीके सभी खर्चों में किया जा सकता है / अत एव इस कल्पित देवद्रव्यको देवकुं साधारण माना गया है / " इस कल्पित देवद्रव्यकी रकममेंसे (अजैन) पूजारीको वेतन दिया जा सके। उपरान्त, अष्टप्रकारी पूजाकी सामग्री भी ला सकते हैं और आभूषण भी बनाये सकते हैं। यद्यपि वर्तमानमें ऐसे तीन विभाग (तीन थैलीयाँ) कहीं भी रखे हुए जान नहीं पडते / हाल तो देवद्रव्यकी एक ही थेली रखकर जिनभक्तिके लिए उपयोग किया जाता है। लेकिन, इससे तो निर्माल्य देवद्रव्यको रकममेंसे भी जिनपूजा होनेकी
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy