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________________ परिशिष्ट-५ 287 गया है कि गरीब श्रावक देरासर जाय तो, उसने सामायिक ग्रहण किया हो तो पारीको देरासरमें आये किसी श्रीमंतके स्वद्रव्यके फूलगूंथनका काम बताये अथवा उसके केसर घिस देनेका काम बताये / ' विपक्षका कहना है कि इस पाठमें ऐसा कहा गया कि- 'वह गरीब श्रावक, श्रीमंतके फूलोंसे या केसरसे-परद्रव्यसे पूजा करता है / ' विपक्षने इस पाठ पर उचित ध्यान नहीं दिया, ऐसा मुझे लगता है, उस पाठमें बताया गया है कि - पूजाकी जो सामग्री है, उसके अभावमें संघ या व्यक्तिंकी ओरसे किसी व्यवस्थाके अभावमें-गरीब श्रावक इस प्रकार दूसरोंके फूल गूंथे या केसर घिसे / अब यहाँ अगर पूजाकी सामग्रीका सद्भाव होता, अर्थात् वहाँ संघ द्वारा की गयी कोई व्यवस्था होती अथवा वह श्रीमंत श्रावक, अपने केसरसे या फूलसे उस गरीब श्रावकको पूजा करानेको कहता, तो वह श्रावक अवश्य उससे पूजा करता / वहाँ ऐसा तो सूचित नहीं किया है कि वह श्रावक फूलपूजा-केसरपूजा आदि पूजा करनेकी उसकी अनुकूलता हो तो भी इन्कार कर दे / पूजा करनेकी मना कर दे / और, केवल किसीके फूल गूंथे या केसर घिसे / नहीं, वहाँ ऐसा सूचित नहीं किया / यदि जो अन्यके हैं उन फूल, केसर आदि पदार्थों के गंथने-घिसनेसे जिनभक्ति हो सकती है तो दूसरेके उन फूल, केसर द्वारा पूजा करने स्वरूप जिनभक्ति क्यों न हो सके ? अन्यथा दूसरोंके फूल गूंथनेके कार्यमें फूल तो परद्रव्य ही हैं न ? तो परद्रव्यसे ऐसी जिनभक्ति भी नहीं होनी चाहिए / ___ 'पूजा सामग्री-अभावात् ऐसे स्थलके पाठको विपक्ष ध्यानमें ले, ऐसी मेरी बिनती है।' ___अब देवद्रव्यसे पूजादि हो, उसके बारेमें उन उन महापुरुषों आदिके समर्थन बताता-पेश करता हूँ :.. (7) पू.पाद रविचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. (प्रश्नोत्तरकर्णिका) (धा. वही. विचार गुजराती पृ. 202 तथा 222) .(8) सेनप्रश्र (842) में सवाल किया है कि देरासरके नौकर के ... पास अपनी निजी काम कराया जाय ? जवाब : न कराया जाय / (इसका अर्थ तो यही हुआ न कि नौकरको
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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