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________________ 280 ___ धार्मिक-वहीवट विचार देरासरका ही काम करनेवाले गुरखे, पूजारी आदिका वेतन, जिनपूजाका केसर, घी आदि सामग्री, संघ द्वारा कल्पित देवद्रव्यमेसें देनेका राजमार्ग होने पर भी, यदि साधनसंपन्न जैनलोग स्वद्रव्यसे यह सारा लाभ उठाये तो वह अत्युत्तम बात है / इसका अमल हो, ऐसा बलवत्तर-प्रभावशाली उपदेश भी पुण्यशाली गीतार्थ' मुनिजनों को उन्हें देते रहना चाहिए / . कोई सवाल उठा सकता है कि सिद्धान्तकी वात. कौनसी है ? तो उसे जो शास्त्रोक्त विधान हो, उससे अवगत कराया जाय, यह आवश्यक है / शास्त्रवेत्ताओंने कल्पित देवद्रव्यमेंसे उपर्युक्त वेतन तथा पूजासामग्रीकी स्पष्ट छुट्टी दी है / उपरान्त, श्राद्धविधिग्रन्थमें देरासरके निभाव निमित्त आमदानियोंके साधनखेत, मकानोंके किराये आदि द्वारा प्राप्त होनेवाले धन(आदानादि द्रव्य) से जिनपूजा करनेका विधान किया है / यह सामान्य विधान है / अपवादरूप नहीं / उस बातको सब लोग अच्छी तरह समझ लें / कोई प्रश्न करेगा कि वह पूजारी और वह सामग्री तो हमारे लिये है, तो देवद्रव्यका उसमें उपयोग कैसे हो सकता है ? . इसका उत्तर यह होगा कि देवनिमित्त जो कार्य हो, उसमें देवद्रव्यका उपयोग किया जाय / हाँ, व्यक्तिगतरूपमें प्रत्येक जैनको स्वद्रव्यसे पूजादि करनी चाहिए / लेकिन संघशाही रूपसे संघ, देवद्रव्यसे भी पूजादिकी व्यवस्था कर सकता है / (देखें स्व. पूज्यपाद श्री प्रेमसूरिजी म.सा.का पत्र-परिशिष्ट३) उपरान्त, ऐसा प्रश्र करनेवालोंको मुझे यह पूछना है कि, देरासर किसके लिए बनवाया जाता है ? जवाब यही होगा कि पूजा करनेवालोंके लिए, क्योंकि, भगवंतको देरासरकी आवश्यकता नहीं है / अब मुझे यहाँ यह प्रश्न करना है कि पूजारीकी तरह देरासर भी अपने लिए है तो देरासरके बनवानेमें देवद्रव्यका उपयोग क्यों किया जाता है ? उसमें तो करोडों रूपयोंका उपयोग किया जाता है / पूजारी और पूजासामग्रीमें तो हजार रूपयोंका ही उपयोग किया जाता है / यदि हजारों रूपयोंके व्ययसे देवद्रव्यको घाटा पहुँचता हो तो करोडों रुपयोंके व्ययसे कितना सारा नुकसान होगा ? अब यदि देरासरों (नये-पुराने के निर्माणकार्यको 'देव'से संबंधित कार्य मानकर देवद्रव्यका उपयोग किया जाता है तो क्यों पूजारी और पूजासामग्रीको देव संबधित कार्य मानकर के कारण, उसमें देवद्रव्यका उपयोग किया न
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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