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________________ परिशिष्ट-२ 217 उत्तर : द्रव्यसप्ततिकाकारने श्रा. जी. वृत्तिमें हुए इस पृथग् उपादानके रूपमें ऐसे विभागोंका उल्लेख नहीं किया, लेकिन हीर प्रश्नोत्तर और श्रा. जी. वृत्तिके वचनोंका परस्पर जो विरोध उपस्थित हुआ है उसका निवारण करनेके लिए कल्पित है / 'हीर प्रश्नोत्तरके 3 प्रश्नोंत्तरोंका उल्लेखकरके, बादमें तुरत ही अत्रापि तक्रकौडिन्यन्यायेन भोज्यभोजकत्वसंबंधेनौकोपधिवत्पूजाद्रव्यं न भवति, पूज्यपूजासंबंधेन तु तद् गुरुद्रव्यं भवत्येव, अन्यथा श्राद्धजीतकल्पवृत्तिः विघटते / इत्यादि जो निर्दिष्ट किया है, उसके द्वारा यह स्पष्ट है / हीर- प्रश्नोत्तरमें सुवर्णादिका गुरुद्रव्यके रूपमें निषेध किया है, जबकि श्रा. जी. वृत्तिमें उसका गुरुद्रव्यमें समावेश किया है / अतः इन दोनोंमें दृष्टिगोचर होनेवाले विरोधको दूर करनेके लिए द्रव्यसप्ततिकाकारने दो विभाग किये / हीर प्रश्नोत्तरमें सुवर्णादिका गुरुद्रव्यके रूपमें जो निषेध किया है, वह भोगार्ह गुरुद्रव्यके रूपमें है, पूजार्ह गुरुद्रव्यके रूपमें नहीं / श्रा. जी. वृत्तिमें उसका गुरुद्रव्यमें जो समावेश किया है, वह पूजार्ह गुरुद्रव्यके रूपमें है / अत: इन दोनोंमें कोई विरोध नहीं / ऐसी व्यवस्था द्रव्यसप्ततिकाकारने निर्दिष्ट की है यह भी तथाकथित विरोधके शमनके लिए ही है, ऐसा सूचन भी उन्होंने स्वयं अन्यथा श्राद्धजीतकल्पवृत्तिः विघटते' कहने द्वारा कर दिया है / प्रश्न : यदि विभाजक उपाधि, भोगार्हत्व और पूजार्हत्व नहीं तो कौनसे धर्म हैं ? उत्तर : कादाचित्कत्व और अकादाचित्कत्व या तो औत्सर्गिकत्व और आपवादिकत्व या तो ऐसे कोई दो धर्म यहाँ विभाजक उपाधि हैं, ऐसा मानना जरूरी है / .. प्रश्न : ऐसा माननेका कोई आधार है ? - उत्तर : अवश्य, वृत्तिकारके खुदके वाक्य आधार है / कनकादौ शब्दका उन्होंने जो स्वयं विवरण दिया है उसके पर उहापोह करनेसे यह समझा जाता है / उसे इस प्रकार 'आदिशब्दात् वस्त्रादौ कनकादौ च परिभुक्ते सति......' ऐसा सीधा न कहकर 'कनकादौ च' इतना कहनेके बाद उसका उन्होंने 'धर्मलाभ' इत्यादि विवरण किया है / यहाँ विशेषता यह देखनी है कि 'आदि' शब्दसे वस्त्रादिके ग्रहणका सूचन करने पर भी उसका कोई विवरण नहीं दिया और कनकादिके ग्रहणका सूचन किया और उसके लिए
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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