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________________ परिशिष्ट-२ 199 निर्माल्य द्रव्यसे भी पूजा करनेका निर्देश दिया है / उपरान्त, कल्पित द्रव्य तो देवसंबंधी सर्व कार्योमें (अर्थात् पूजा आदिमें भी) उपयुक्त किया जाता है / उसमें तो किसीको संदेह ही नहीं है / 'इस प्रकार देवद्रव्यके जो तीन प्रकार कहे गये हैं, उनमेंसे ऐसा कोई देवद्रव्य नहीं रह जाता जिसमेंसे जिनपूजा आदि हो ही न सके / इसीलिए ही उपरोक्त अनेक ग्रंथोंके ग्रंथकारोंने सामान्यमेंसे ही देवद्रव्यमेंसे ही जिनपूजा, जीर्णोद्धार आदि कार्य करनेका सर्वसंमतिसे विधान किया है / उपरान्त, इनमेंसे किसी भी शास्त्रमें देवर जिनपूजामें उपयोग करनेका जो निर्देश दिया है उसे अपवादस्वरूप का . रूप सूचित नहीं किया, लेकिन जीर्णोद्धारके साथ साथ मुख्य रूपसे ( उत्सर्गपदसे ही) जिनपूजा करनेका विधान किया है, यह उल्लेखनीय है / अलबत्त, उसका अर्थ यह नहीं होता कि 'जिनपूजा देवद्रव्यसे ही करनी होगी'; क्योंकि श्रावक स्वद्रव्यसे जिनपूजा करे तो उसमें उन्हें ज्यादा लाभ हो सकता है / अपने मन-वचन और कायाको प्रभुभक्तिमें जोडनेसे जो लाभ प्राप्त हो, उसकी अपेक्षा उन तीनोंके साथ अपने धनको भी प्रभुभक्तिमें जोड दे तो उससे बहुत-सा लाभ प्राप्त हो, यह स्पष्ट ही है / अतः श्रावकोंको तो यथाशक्ति स्वद्रव्यसे जिनपूजा करनी ही है, लेकिन देवद्रव्य यदि उपलब्ध हो तो, योग्य रूपसे, उसमेंसे भी, उस स्वद्रव्यकृत प्रभुभक्तिके उपरान्त भी प्रभुजीकी अधिक विशिष्ट भक्ति करनी चाहिए / और स्वद्रव्यकृत वह शक्य न हो तो देवद्रव्यमेंसे भी उसे करनी ही चाहिए; क्योंकि प्रभुभक्ति अधिकाधिक हो उसके लिए देवद्रव्यकी वृद्धि की जाती है, ऐसा उपरोक्त शास्त्रपाठोंका अभिप्राय - अतः, देवद्रव्यमेंसे जिनपूजा करना यह शास्त्रविरुद्ध नहीं, यह सिद्ध होता है। (2) जब इतने सारे शास्त्रपाठ, एक साथ देवद्रव्यमेंसे भी जिनपूजा करनेका स्पष्ट निर्देश देते हैं तब श्राद्धदिनकृत्य और श्राद्धविधिके निर्धन श्रावकविषयक पाठसे 'शक्ति न हो तो शरीरसे हो ऐसा अन्य देरासरविषयक कार्य करना, लेकिन परद्रव्यसे (या देवद्रव्यसे) जिनपूजा न करे / ' ऐसा छिछल्ला अर्थ निकालना यह आत्मघाती नहीं होगा ?
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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