SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 203
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 182 __ धार्मिक-वहीवट विचार भी पूजा कही है। संमेलनके इस प्रस्तावके पीछे यही आशय है / इसमें अष्टप्रकारी पूजाएं बंद कर देनेकी बात कहीं नहीं / अरे, धनवान प्रभुभक्त धनमूर्छा को उतारकर हमेशा अष्टप्रकारी ही नहीं, परंतु सर्वप्रकारी (निन्यानवे अभिषेकादिरूप) जिनपूजा करे तो वह कितना सुंदर होगा ? उससे इस धरती पर कितना पुण्यबल प्राप्त होगा ? जिससे समुचे जगतमें सच्चे सुख, शान्ति और, जीवोंके हित प्रसारित हो जायेंगे / आज प्रायः सर्वत्र व्यापक बनी परमात्माकी अष्टप्रकारी पूजाका निषेध करनेका इस प्रस्तावका लेशमात्र लक्ष्य हेतु नहीं है / प्रस्तावका तात्पर्य आशातना निवारणमें है / संमेलनके विरोधियोंके मनमें चकराती बात कोई अलग ही है / उसे यहाँ देख ले / ___ कई वर्ष पूर्व पू. स्वर्गस्थ कल्याणविजयजी म. साहबने वर्तमानकालीन श्वेताम्बरीय जिनपूजा पद्धतिका सख्त विरोध किया था / उन्होंने उसके बारेमें कडी समालोचना की थी / यह संमेलन उनके पल्लेमें बैठ गया है, ऐसा समझकर प्रस्तावका सख्त विरोध हो रहा है, ऐसा एक अनुमान है / जबकि वास्तविकता ऐसी नहीं है / उन स्वर्गस्थ महात्माकी बातें उनके ग्रन्थों में हालमें भले रहीं / संमेलनके श्रमणोंने उसका विचार तक नहीं किया। उन्होंने तो अष्टप्रकारी पूजामें प्रक्षाल, केसर, बरास आदिके कारण पूजारीकी आवश्यकता देखी, पूजारीवर्ग मंदिरमें प्रवेश कर अविरत कैसी घोर आशातनाएँ करता है और किसीकी परवाह नहीं करता और न ही किसी प्रकारका उत्तरदायित्व निभाता है, यह देखा और इसीलिए आशातना निवारणके लिए प्रस्ताव किया / जैनोंकी बिना आबादीवाले गाँवोमें वासक्षेप पूजासे भी संतोष मानकर आशातना निवारण जारी रखनेका निर्देश किया / यदि इस तात्पर्य को अच्छी तरह समझा जाय तो ठरावके विरोधकी बात भूला दी जायेगी / परमात्माके प्रति अपार भक्तिसे प्रेरित होकर ही अशातना-निवारण का विचार गाँवोमें वासक्षेप पूजाके विधान तक पहुँच पाया है / इस बात समझनेको पंडितजनोंको एक क्षण भी नहीं लगेगा / ऐसा हो, ऐसा हम नहीं सोचते, परंतु पूजारियोंके युनियन खड़े होनेके
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy