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________________ 116 ... ' धार्मिक-वहीवट विचार भी अभी कोई हर्ज होनेवाला नहीं, लेकिन मध्यमवर्गीय जैनोकी हालत उत्तरोत्तर बिगडनेवाली है / ये लोग भी तनतोड प्रयत्नकर, भोजन आदिके प्रश्नोंको हल कर सकते हैं / दो पैंसोकी बचत भी करते हैं, लेकिन परिवारमें जारी बीमारियाँके कारण उनकी बची-बचायी रकम खत्म हो जाती है और उपरसे कर्जके ढेरके ढेर जम जाते हैं / - इसके उपरान्त, शालाकी किताबें और फीसका बोझ तथा बार बार होनेवाले लग्न आदि व्यवहारोंके कारण भी वे बेहद परेशान रहते हैं / जैन कौमके विशिष्ट दाताओंसे मेरी प्रार्थना है कि वे अभी भी साधर्मिकको अधिक धनदान करें / प्रत्येक गाँवमें उनके लिए अनाज, तैल, गुड़ आदिकी बिक्रीकी व्यवस्था हो और आरोग्यविषयमें सारी सहायता दी जाय और उनके जीवनविकासके बारेमें नोटों, किताबों आदिका वितरण मुफ्तमें किया जाय, यह बहुत जरूरी है / जब शास्त्रकारोंने ही साधर्मिक भक्तिके धर्मको सर्वाधिक प्राथमिकता दी है तब वर्तमान समयकी उनकी विषम स्थिति देखकर ऐसा कहनेको जी चाहता है कि दूसरी कई बातोंको गौण समझकर इस क्षेत्रको प्रधानता देनी चाहिए / कलिकालसर्वज्ञ भगवंतने अपने परमभक्त राजा कुमारपालको इस विषयमें उग्र बनकर सावधान किये थे / उन्हें अपने कर्तव्यके प्रति जाग्रत किये थे / तो क्या वर्तमानकालीन पुण्यात्मा जैनाचार्य अपने भक्तोंको इस विषयमें चेतावनी नहीं देंगे ? प्रश्न : (104) धर्मके विषयमें लाखों रूपयोंके खर्च करनेवाले भाई, अपने साधर्मिक गरीब बंधुओंकी उपेक्षा करे, यह उचित है क्या ? उत्तर : जरा भी उचित नहीं / ऐसा करनेसे लोगोंमें उनके धर्मकी निन्दा होने लगती है / ___यद्यपि आजकी गरीबी, यह कोई ईश्वरसर्जित नहीं, बल्कि मानवसर्जित है / यूरपी लोग विश्वकी अईसाई और अगौर तमाम प्रजाको नामशेष करना
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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