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________________ धार्मिक-वहीवट विचार अपनी प्रजाके मनोरंजनके लिए ऐसे हिलस्टेशनोंकी आवश्यकता रहती ही हैं / अत एव शासक भी ऐसे धार्मिक तीर्थोंको प्रोत्साहन देनेके लिए तैयार रहता है / - नाम, तख्ती, बावला, चित्र आदिके बढे मोहके कारण ही कई संसारत्यागी लोग, नूतनतीर्थ निर्माणकी प्रवृत्तिमें एकदूसरेके साथ होडमें लगे हो, ऐसा भी द्रष्टिगोचर कई जगे हो रहा है / . फिर भी, महाराष्ट्र जैसे राज्योंमें यदि कई लोगोंको धर्माभिमुख बनानेवाला और जिनभक्तिमें बढावा करनेवाला इस प्रकारका तीर्थ निर्माण उपयुक्त बनता हो तो वहाँ ऐसी दलीलोंसे तीर्थ-निर्माणका निषेध न करें / प्रश्न : (60) पूज्यपाद हरिभद्रसूरिजी आदिके पूर्वके आचार्योने, देवद्रव्यके तीन विभागोंके बारेमें चर्चा की है, लेकिन उन्होंने किसी संघमें अमल कराया हो, ऐसा महसूस क्यों नहीं होता ? उत्तर : यह अमल भूतकालमें किसी न किसी रूपमें जारी था ही; लेकिन अभी थोडे समयसे (यति आदिके समयसे) संवेगी साधुओंकी अल्पसंख्या होनेके कारण अथवा श्रावकोंके प्रमाद और अज्ञानके कारण छूट गया होगा, यह संभव है / . परन्तु स्व. पूज्यपाद आ० देव श्रीमद् सागरानंद सूरीश्वरीजी म० साहबने सुरतमें निर्मित आगममंदिरके जिनालयके संविधानमें इन उपविभागोंका समावेश किया है / उनका संचालन किस प्रकार करें उसकी जानकारी दी गयी है / (इस ग्रंथमें अन्यत्र इन बातोंका उल्लेख है / ) ___ उपरान्त, हमारे तरणतारणहार स्व. गुरुदेव श्रीमद् प्रेमसूरीश्वरजी म० साहबने इन उपविभागोंको कार्यान्वित कर देनेकी बात वि.सं. २००७में की है / उस साल उन्होंने बम्बई-लालबाग (भुलेश्वर) में संविधानका मुसद्दा तैयार किया था / तद्विषयक प्रश्नोत्तरीमें इस बातका द्रढतासे निर्देश किया गया हालमें मेरे इस ग्रंथमें निर्दिष्ट देवद्रव्यसंबद्ध बातोंका जो लोग तीव्र विरोध कर रहे हैं, वे इन उपविभागोंकी व्यवस्था चालू करानेके विषयमें बिलकुल चूप क्यों हैं ? यह समझमें नहीं आता / एकदूसरेके खातेकी रकमका उपयोग एकदूसरेके कामोंमें न किया जाय, फिर भी एसे उपविभागोंका आयोजन न करनेसे उपयोग हो जानेका दोष स्पष्ट है-फिर भी वे मौन रहे हैं / खैर..... उनके दिलोंकी बातोंको कैसे समझी जायँ ?
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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