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________________ चलते-चलते देखा इसकी, हर बार नज़रिया बदली है। हर बार बदल देता मधुवन, हर बार नगरिया बदली है।। इस घर में कुण्डल आ पहिने, उस घर में छोड़ी थी पायल। इस घर में बजती है शहनाई, उस घर छोड़े आँसू घायल।। इस चला-चली के मेले में, हर बार डगरिया बदली है। हर बार बदल देता मधुवन, हर बार नगरिया बदली है।। मैं भटक रहा हूँ भव-वन में ऐसा, कि छोर नहीं पाया। अज्ञान-तिमिर घन छाया है, समकित का भोर नहीं आया।। हर बार बदलता घर द्वारे, हर बार अंगनिया बदली है। हर बार बदल देता मधुवन, हर बार नगरिया बदली है।। उस पार न जाने क्या होगा इस पार प्रिये मधु है, तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा? संसृति के जीवन में सुभगे, ऐसी भी घडियाँ आयेंगी. जब दिनकर की तम-हर किरणें, तम के भीतर छिप जायेंगी। जेब निज प्रियतम का शव रजनी, तम की चादर से ढंक देगी, तब रवि-शशि-पोषित यह पृथिवी कितने दिन खैर मनायेगी? जब इस लम्बे चौड़े जग का अस्तित्त्व न रहने पायेगा, तब हम दोनों का नन्हा-सा संसार न जाने क्या होगा? इस पार प्रिये मधु है, तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा? दृग देख जहाँ तक पाते हैं, तम का सागर लहराता है, * -- फिर भी उस पार खड़ा कोई, हम सबको खींच बुलाता है। मैं आज चला, तुम आओगी कल, परसों सब संगी-साथी, दुनिया रोती-धोती रहती, जिसको जाना है जाता है। मेरे तो होते पग डग-मग, तट पर के ही हिलकोरों से, जब मैं एकाकी पहुँचूँगा, मँझधार न जाने क्या होगा? . इस पार प्रिये मधु है, तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा? -'इस पार उस पार', डॉ. हरिवंशराय बच्चन प्राकृतविद्या-जनवरी-दिसम्बर (संयुक्तांक) '2004 4087
SR No.004377
Book TitlePrakrit Vidya Samadhi Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Bharti Trust
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2004
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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