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________________ आत्मोत्थान में सल्लेखना की भूमिका डॉ. राजेन्द्र कुमार बंसल सुख दो प्रकार का होता है- पहला लौकिक सुख और दूसरा अलौकिक सुख / संसार के अनन्तानन्त जीव अनादिकाल से परद्रव्यों के संयोग से इन्द्रियभोग द्वारा लौकिक सुख की खोज में भटक रहे हैं। इन्द्रिय-सुख क्षणिक, बाधित, अपूर्ण और परिस्थितिजन्य है। इसकारण जीव दुःखी हैं। वे स्वाभाविक शाश्वत सुख की खोज में हैं। यह खोज ही अलौकिक की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करती है। आत्मा ज्ञान-दर्शनस्वभावी है। वह अपने सत्स्वरूप को समझकर, श्रद्धान कर अपने अतीन्द्रिय स्वभाव में लीन रहे, यही उसका धर्म है, अलौकिकता है और परमात्मत्व है। ज्ञान स्वभाव का अवलम्बन कर स्वतन्त्रता, पूर्णता की प्राप्ति का कार्य अनेक भवों में सम्पन्न होता है। भवधारण-त्याग की अनादि कहानी को जन्म-मृत्यु शब्दों से पुकारा जाता है। जन्म पर उत्सव मनाया जाता है और मृत्यु पर सामान्यतः शोक मनाया जाता है, किन्तु जब हम अध्यात्म और अलौकिक दृष्टि से विचार करते हैं तो यह सहज ही स्पष्ट होता है कि जन्म और मृत्यु दोनों समान हैं और अनादि जीवन के पड़ाव हैं, अतः उनमें हर्ष-विषाद करना अनुचित और सत् स्वभाव के विपरीत है। जैसा महोत्सव जन्म का है, वैसा ही महोत्सव मृत्यु के समय भी मनाया जाना चाहिए। जैनदर्शन की यह विशेषता है कि वह मृत्यु-महोत्सव द्वारा नवीन जीवन के परिष्कार, उन्नति और अभ्युदय का मार्ग खोजता है। इसका दर्शन बहुत ही रहस्यात्मक, प्रेरक और आत्मसुखोन्मुखी है। मृत्यु-महोत्सव का सम्बन्ध देह त्यागने की विधि से है जिसे रूढ़ भाषा में समाधिमरण-सल्लेखना या सन्थारा कहा जाता है। इसमें कषाय रूप मनोविकारों और काया से मुक्त कर उत्तम गति के आयु बन्ध की अवधारणा मूर्त होती है। इस भावना से देहत्याग की विधि सम्पन्न होने पर उसे मृत्यु-महोत्सव कहा जाता है। इससे उत्तम गति प्राप्त होती है, जो आत्मकल्याण में साधक सिद्ध होती है। * इस शताब्दी के प्रथमाचार्य चारित्रचक्रवर्ती शान्तिसागर जी ने नेत्रज्योति मन्द होने पर प्राणिसंयम पालने की असमर्थता को देखते हुए आत्मप्रेरणा से आत्मकेन्द्रित प्राकृतविद्या जनवरी-दिसम्बर (संयुक्तांक) '2004 10 71
SR No.004377
Book TitlePrakrit Vidya Samadhi Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Bharti Trust
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2004
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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