SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पूरी निःशब्दता के बीच शान्ति रखती है। यहीं पहुँच कर आत्मा पूर्णतः एकान्त होती है प्रशब्द मौन के पास जाने पर शान्त होती है। अन्धकार की परतों का गान करो जहाँ एकान्त मूल बिन्दु है उसे खोजो विस्मृति के गाओ गान जहाँ प्राणों को शान्ति मिलती है उस गहराई का करो संधान जहाँ अशब्दता की कली खिलती है। विदाई परिजन देत विदाई, है अजब जुदाई सभी का दिन आना है। जाएगी साथ भलाई, करी जु बुराई, सभी रह जाना है।। आयु कर्म जब अन्तिम बेला, उड़ जाएगा हंस अकेला। पड़ा रहेगा यहीं झमेला, दर्शक का लग जाए मेला।। पुरजन रोबत भाई, नारि घबराई, भयानक बाना है। परिजन देत विदाई, है अजब जुदाई सभी का दिन आना है।। आय पड़ोसी ठठरी बाँधी, मित्र ले चले करके काँधी। कहने लगे ले गई व्याधी, साथ चलीं नहीं एक उपाधी।। सुत तन आग लगाई, चिता दहकाई, कहैं सब जाना है। परिजन देत विदाई, है अजब जुदाई सभी का दिन आना है।। सन्मति सावधानि की बेला, अन्त समय में चले अकेला। साथ चले नहिं एक अधेला, किंचित् जोड़ो मती झमेला।। रागद्वेष विसराई, धरम सुखदाई, मुक्ति यदि पाना है। परिजन देत विदाई, है अजब जुदाई सभी का दिन आना है।। जाएगी साथ भलाई, करी जु बुराई सभी रह जाना है। परिजन देत विदाई, है अजब जुदाई सभी का दिन आना है।। 56 00 प्राकृतविद्या-जनवरी-दिसम्बर (संयुक्तांक) '2004
SR No.004377
Book TitlePrakrit Vidya Samadhi Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Bharti Trust
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2004
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy