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________________ प्रो. (डॉ.) राजाराम जैन को अन्तर्राष्ट्रीय सम्मान .. श्री कुन्दकुन्द भारती प्राकृत शोध संस्थान, नई दिल्ली के निदेशक प्रो. (डॉ.) राजाराम जैन के लिये अमेरिका की विश्वविख्यात ए.बी. इन्स्टीट्यूट ने उनकी विद्वत्तापूर्ण शोध-खोज, प्राचीन अप्रकाशित पाण्डुलिपियों का सम्पादन-प्रकाशन, प्राकृत एवं जैन-विद्या के प्रचार-प्रसार, दीर्घकालीन शैक्षणिक एवं सामाजिक सेवाओं आदि का मूल्यांकन कर उन्हें सन् 2004 का विशिष्ट विद्वान् (Man of the Year 2004) घोषित किया है। इस अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति के सम्मान-पुरस्कार प्राप्ति के लिये डॉ. जैन को हार्दिक बधाइयाँ एवं अनेकशः मंगल-कामनाएँ। ... प्रो. (डॉ.) प्रेम सुमन जैन स्वयम्भू पुरस्कार से सम्मानित प्राकृभाषा एवं साहित्य में महत्त्वपूर्ण योगदान को सम्मानित करने हेतु जैनविद्या संस्थान श्रीमहावीरजी द्वारा प्रविर्तित 'स्वयम्भू पुरस्कार' 'वर्ष 2003 प्राकृत-अपभ्रंश के मनीषी प्रो. (डॉ.) प्रेम सुमन जैन, उदयपुर को कवि विबुध श्रीधर की कृति सुकुमासामिचरिउ के सम्पादन हेतु 6 अप्रैल 2004 को श्री एन.के. सेठी की अध्यक्षता की में राजस्थान सरकार में मन्त्री डॉ. किरोड़ीमल मीणा द्वारा भव्य समारोह में समर्पित किया गया। सम्मान में 21,000/- रुपये की राशि, प्रशस्ति पत्र, प्रतीक चिह्न, शॉल आदि भेंट किए गए। पुरस्कृति कृति का शीघ्र ही जैनविद्या संस्थान, श्रीमहावीरजी से प्रकाशित की जायेगी। प्रो. (डॉ.) प्रेम सुमन जैन को हार्दिक बधाई। श्री नरेश कुमार सेठी तीर्थक्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष निर्वाचित ___ श्री नरेश कुमार सेठी, जयपुर भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। इस उपलक्ष्य में श्रीमहावीरजी में, एक भव्य सम्मान समारोह का आयोजन हुआ जिसकी अध्यक्षता करते हुए ब्र. कमलाबाई ने श्री सेठी को आशीर्वाद देते हुए आशा व्यक्त की कि वे जिस प्रकार श्रीमहावीरजी के अध्यक्ष के रूप में सेवा कर रहे हैं, उससे भी अधिक मेहनत से भारतवर्ष के तीर्थों की सेवा करेंगे। श्री सेठी ने अपने उद्बोधन में कहा कि वे तीर्थों के विकास एवं संरक्षण में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे तथा उसके लिए सरकारी अनुदान से उन्हें कोई परहेज नहीं है। .. एक स्पष्टीकरण 'प्राकृतविद्या' (जुलाई-दिसम्बर-2003) में पृष्ठ 196 पर डॉ. रत्नचन्द्र अग्रवाल ने लिखा है कि- कक्कुक शिलालेख प्राकृतभाषा में नहीं है। परन्तु मैंने अपने लेख में जो कुछ लिखा था वह प्राकृत के मूर्धन्य विद्वान प्रो. (डॉ.) राजाराम जैन की पुस्तक ‘शौरसेनी प्राकृत भाषा एवं उसके साहित्य का इतिहास' के आधार पर ही लिखा है, जिसमें पृष्ठ 154 पर सम्पूर्ण पाठ दिया हुआ है। जिसे सन्देह हो कृपया वहाँ देख लें। -प्रो. शशिप्रभा जैन, नई दिल्ली 21200 प्राकृतविद्या-जनवरी-दिसम्बर (संयुक्तांक) '2004
SR No.004377
Book TitlePrakrit Vidya Samadhi Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Bharti Trust
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2004
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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