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________________ उन्होंने व्यवस्थाओं में पूर्ण सहयोग प्रदान कर अपनी सक्रियता को रेखांकित किया है। समारोह की विशेषता यही रही कि यहाँ कोई प्रदर्शन नहीं। अपितु इस अवसर पर 'पुरुदेव-प्रतिष्ठा' नामक एक ऐसी संग्रहणीय स्मारिका का प्रकाशन किया गया जिसमें शोधपूर्ण लेख हैं। इस क्षेत्र में जब मन्दिर निर्माण की बात आरम्भ हुई उस समय इस क्षेत्र में मात्र सात या आठ परिवार ही थे, परन्तु जब से मन्दिर-निर्माण का कार्य आरम्भ हुआ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा होने तक लगभग एक सौ पचास परिवार स्थाई रूप से रह रहे हैं। प्रतिदिन प्रातः देवपूजा, मंगल-प्रवचन एवं रात्रि में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अन्तर्गत पंचकल्याणक क्रियाओं को सुन्दर और आकर्षक रूप में प्रस्तुत किया गया। श्री प्रदीप जैन एवं उनके सहयोगियों ने भक्ति संगीत प्रस्तुत कर श्रोताओं को मन्त्र मुग्ध कर दिया। रात्रि में प्रतिदिन डॉ. वीरसागर जैन के पंचकल्याणक सम्बन्धी विशेष प्रवचन हुये। आगम चक्षु है : आचार्यश्री विद्यानन्द नई दिल्ली। कुन्दकुन्द भारती में श्रुतपंचमी के पुनीत पर्व पर आयोजित दो दिवसीय कार्यक्रम का शुभारम्भ करते हुए पूज्य आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज ने कहा- श्रुत अथवा स्मृति रूप में चली आ रही तीर्थंकरों की वाणी-जिनवाणी को जिस दिन लिपिबद्ध करने के पश्चात उसकी प्रतिष्ठा पूजां की गई वह ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी का दिन था। उस दिन से इसको श्रुतपंचमी के नाम से जाना गया। आज का दिन सम्पूर्ण भारत में पर्व के रूप में मनाया जाता है। आचार्यश्री ने आगे कहा— मूर्ति की पंचकल्याणक प्रतिष्ठा कर वेदी पर विराजमान कर देना प्रतिष्ठा नहीं है। सतत भगवान के गुणों का चिंतवन करना स्मरण करना प्रतिष्ठा है। आगम चक्षु हैं और पुस्तकालय ज्ञानमन्दिर। आज हमें स्वाध्याय, आगम-संरक्षण और ज्ञानमन्दिरों के निर्माण की महती आवश्यकता है। प्रो. (डॉ.) वाचस्पति उपाध्याय ने कहा— गति और निरन्तरता कभी अपवित्र नहीं होती। ज्ञान इसलिए ही पवित्र है कि वह निरन्तर गतिशील है। राग-द्वेष से रहित जो जीव आत्मा है वही सच्ची जिनवाणी है। हमने जो सुना है उसको गुनें भी श्रुतपंचमी जैसे पवित्र पर्व की सार्थकता तभी है। केवल सुनते रहें, गुनें नहीं, तो सुनना अर्थहीन हो जायेगा। ____डॉ. सत्यव्रत शास्त्री ने कहा- जब स्मरण शक्ति कम होने लगी तो ग्रन्थों को लिपिबद्ध करने की आवश्यकता पड़ी। जब ग्रन्थ लिपिबद्ध होने लगे तो उनकी सुरक्षा के लिए ग्रन्थालय अथवा पुस्तकालय का निर्माण होने लगा। श्रुत, विद्या का पर्यायवाची शब्द है। ऐसा लगता है कि सबसे पहले लिखने के लिए पाषाण का 20401 प्राकृतविद्या जनवरी-दिसम्बर (संयुक्तांक) '2004
SR No.004377
Book TitlePrakrit Vidya Samadhi Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Bharti Trust
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2004
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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