________________ 12] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : त्रयोदशमो विभागः हरियाने हिंगुलर, मगोसिला अंजणे लोणे // 33 // गेरुवनिप्रसेढिय, सरोरट्ठिय-पिट्ट कुक्कुस कए / उकिट्ठ-मसंस?, संस? चेव बोधव्व // 34 // असंसट्टेण हत्येण, दबीए भाषणेण वा / दिज्जमाणं न इच्छिज्जा, पच्छाकम्मं जहिं भवे // 35 // संस?ण य हत्थेण, दबीए भायणेण वा। दिजमाणं पडिच्छिजा, जं तत्थे-प्पणियं भवे // 36 // दुराहं तु मुंजमाणाणं, एगो तत्थ निमंतए / दिज्जमाणं न इच्छिजा, छंदं से पडिलेहए // 37 // दुराहं तु भुजमाणाणं, दोऽवि तत्य निमंतए / दिजमाणं पडिच्छिज्जा, जं तत्थेसणियं भवे // 38 // गुम्विणीये उवराणत्थं, विविहं पाणभोत्रणं / भुजमाणं विवजिजा, भुत्तसेसं पडिच्छए // 31 // सिया य समणटाए, गुम्विणी कालमासिणी। उठ्ठिया वा निसीइजा, निसन्ना वा पुणुट्ठए // 40 // तं भवे भताणं तु, संजयाण अकपियं / दितिय पडिबाईक्खे, न मे कप्पइ तारिसं // 11 // थणगं पिज्जेमाणी, दारगं वा कुमारिधे / तं निक्खिवित्तु रोयंतं, याहरे पाणभोयणं // 42 // तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकपियं / दितिय पडियाआईवखे, न मे कपइ तारिसं // 43 / / जं भवे भतपाणं तु, कपाकप्पंमि संकि / दितियं पडियाईक्खे, न मे कपइ तारिसं // 44 // दगारेण पिहियं, नीसाए पीटएण वा / लोढेण या वि लेवेण, सिलेसेण व केणइ // 45 // तं च उभिदिउं दिजा, समगट्टाए व दायए। दितियं पडिबाईक्खे, न मे कप्पइ तारिसं // 46 // श्रतणं पाणगं वावि, खाइमं साइमं तहा / जं जाणिज सुणिजा वा, दाणट्ठा पगडं इमं // 47 // तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाणं अकप्पियं / दितियं पडियाइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं // 48 // असणं पाणगं वावि, खाइमं साइमं तहा। जं जाणिज सुणिजा वा, पुराणट्ठा पगडं इमं ॥४॥तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पियं / दितियं पडिबाइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं // 50 // असणं पाणगं वावि, खाइमं साइमं तहा / जं जाणिज सुणिज्जा वा,