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________________ 1388 मामहानिसायसूत्रं यvi६7 परमत्थे, किच्यानिध्यमथाणगे ! // 229 // एगणं हियं वयणं, गोयम ! हिस्संति केवली। गो बलमोडीइ कारें ति, हत्ये धेचूण जंतुणो 130 // तित्यथरभासिए क्यणे, जे तहति अगुपालिया। सिंदा हेरगणा तस्स, पाए पणमंति हरिसिथा।।१३१॥ जे अविश्यपरमन्थे, किच्याकिच्चमजाणगे। अधोसंधीए तेसिं समं, जलथलं गडठिक्करं // 132 // गीयत्यो य . विहारो,बीओ गीयत्थमीसओ। समगुन्नाभो सुसाहणे, नस्थि तश्यं रियल्याणं // 133 // गीथत्ये जे सुसंदिग्गे, अणालस्सी दृढव्बए अरबलियचारिते सययं, गगहोस. विवज्जए॥३४॥ निविथमयाणे, समिथकसाये जिइंदिए / विहरेज्जा तसिं सद्धिं तु, ते उमस्येवि केवली // 235 // सुडमस्स पुटवीजीवरस, जत्गस्स किल्लामणा अप्यारंभ तयं बैंति, गोथमा! सबकेवली // 13 // सुहमस्स परवीजीवरस वावती जत्य संभवे। महामंत थं विति, गोयमा! सबकेवली // 13 // पुटवीकाश्यं एक्कं, दरमलेंतस्स गोयमा!। अस्सायकम्मबंधोह, दु. विमोक्रले ससल्लिए // 138 // एवं च आळतेकवाऊ तहव. यस्सती / तसकाय मेहुणे तह, चिक्कणं चिण पावगं // 139 // तम्हा मेहुणसंकय्यं, पुटवादीण विराहणं। जाबज्जीवं दुरंतफलं, तिविहतिविहण जए // 10 // ता जेऽविदियपरमत्थे, गोथमा! णो य जे मुणे।त. म्हा ते विवज्जेज्जा, दोगगईपंथदाथगा // 141 // जीयत्यास उ वयोग, विसं हालाहले पिये। निजिकय्यो पमको ज्जा, तक्रूणा जं समुहवे // 14 // परमत्मभी निसंतोस (नी तं), अमयरसायणं खुतं / णिविकय्यं णं संसार, मओनि सो.अमयस्समो // 143 // अगीथत्यत्सवयणे. णं, अमयंषि ण घोटए / जेण अथरामरे हनिया,
SR No.004371
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1975
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_mahanishith
File Size23 MB
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