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________________ प्रकीर्णकानि / 9 श्रीदेवेन्द्रस्तवप्रकीर्णकम् / पुणो तंसं // 211 // वट्ट वट्टस्सुवरि तंसं तंसस्स उप्परि होइ। चउरसे चउरंसं उर्दु तु विमाणसेढीयो // 212 // उवलंबयरज्जूयो सव्वविमाणाण हुँति समियायो / उपरिमचरिमंतायो हिटिलो जाव चरिमंतो॥ 213 // पागारपरिक्वित्ता वट्टविमाणा हवंति सम्वेवि / चउरंसविमाणाणं चउहिसिं वेइया भणिया // 214 // जतो वट्टविमाणं तत्तो तंतस्स वेइया होइ। पागारो बोयो अवसेसाणं तु पासाणं // 215 // जे पुण वट्टविमाणा एगदुवारा हवंति सब्वेवि / तिन्नि य तंसविमाणे चत्तारि य हुति चउरंसे // 216 // सत्तेत य कोडीयो हवंति बावत्तरि सयसहस्सा। एसो भवणसमासो भोमिजाणं सुखराणं // 217 // तिरियोववाइयाणं रम्मा भोम्मनगरा असंखिजा। तत्तो संखिजगुणा जोइसियाणं विमाणा उ // 218 // थोवा विमाणवासी भोमिन्जा वाणमंतरमसंखा। तत्तो संखिजगुणा जोइसवासी भवे देवा // 21 // पत्तेपविमाणाणं देवीणं छभवे सयसहस्सा / सोहम्मे कप्पम्मि उ ईसाणे हुति चतारि // 220 // पंवेवणुतराई अणुत्तरगईहिं जाई दिट्ठाई / जत्थ अणुत्तरदेवा भोगसुहमणुवमं पत्ता // 221 // जत्थ अणुत्तरगंधा तहेव रुवा अगुत्तरा सदा / अचित्तपुग्गलाणं रसो अ फासो श्र गंधो अ॥ 222 // पप्फोडियकलिकलुसा पप्फोडियकमलरेणुसंकासा / वरकुसुममहुकरा इव सुहुमपरं नंदि (दंति) घोति // 223 // वरपउम-गभगोरा सब्बे ते एगगभवसहीयो। गम्भवसहीविमुक्का सुंदरि! सुक्खं अणुहवंति॥२२४॥ तेतीसाए सुंदरि ! वाससहस्सेहिं होइ पुराणेण / थाहाराऽवहि देवाणऽणुत्तरविमाणवासिणं // 225 / / सोलसहि सहस्सेहिं पंचेहिं सएहिं होइ पुराणेहिं / श्राहारो देवाणं मज्झिममाउं धरिताणं // 226 // दस वाससहस्साई जहन्नमाउं धरंति जे देवा / तेसिपि य आहारो चउत्थभत्तेण बोद्धब्बो // 227 // संवच्छरस्स सुंदरि ! मासाणं श्रद्धपंचमाणं च / उस्सासो देवाणं अणुत्तरविमाणवासीणं // 228 // अट्ठमेहिं राइदिएहिं अट्ठहि य सुतणु ! मासेहिं / उस्सासो
SR No.004369
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1975
Total Pages152
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_chatusharan, agam_aaturpratyakhyan, agam_mahapratyakhyan, agam_bhaktaparigna, agam_tandulvaicharik, agam_sanstarak, agam_gacchachar, & agam_chandra
File Size16 MB
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