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________________ / 61 प्रकीर्णकानि श्रीदेवेन्द्रस्तवप्रकीर्णकम् ] तस्स थुणंतस्स जिणं सोइयकडा पिया सुहनिसन्ना। पंजलिउडा अभिमुही सुगइ थयं वद्ध माणस्त // 3 // इंदविलयाहिं तिलय रयणंकिए लक्खणंकिए सिरसा / पाए अवगयमाणस वंदिमो वद्धमाणस्स // 4 // विणयपणएहिं सिढिलमउडेहिं अप(पय)डियजसस्स (अप्पडिहयाजस्स) देवेहिं / पाया पसंतरोसस्स बंदिमो वद्धमाणस्स ॥५॥बत्तीसं देविंदा जस्स गुणेहिं वहम्मिया छायं / तो (नो) तस्स वियच्छेयं पायच्छायं उवेहामो // 6 // बत्तीसं देविंदत्ति भणियमित्तमि सा पियं भणइ / अंतरभासं ताहे काहेमो कोउहल्लेणं // 7 // कारे ते बत्तीसं देविंदा को व कत्थ परिवसइ / केवइया कस्स ठिई को भवणपरिग्गहो तस्स ? // 8 // केवइया व विमाणा भवणा नगरा व हुँति केवइया / पुढवीण व बाहल्लं उच्चत्त विमाणवन्नो वा ? // 1 // का रंति व का लेणा उक्कोसं मज्झिमजहराणं / उस्सास्तो निस्सासो श्रोही विसयो व को केसिं ? // 10 // विणयोवयार ग्रोवहम्मियाइ हासवसमुव्वहंतीए। पडिपुच्छिए पियाए भाइ सुअणु ! तं निसामेह // 11 // सुश्रणाण-सागरायो सुणियो पडिपुच्छणाइ जं लद्धं / पुण वागरणावलियं नामावलियाइ इंदाणं // 12 // सुण वागरणावलियं रयणं व पणामियं च वीरेहिं / तारावलिब्ब धवलं हियएण पसन्नचित्तेणं // 13 // रयणप्पभाइकुडनिकुडवासी सुतणू ! तेउलेसागा। वीसं विकासियनयणा भवणबई ते निसामेह (समदिट्ठी सव्वदेविंदा)॥१४॥ दो भवणवई इंदा चमरे वइरोअणे य असुराणं (चमरिंदबलिंद असुरनिकायं च ) / दो नागकुमारिंदा भूयाणंदे य धरणे य // 15 // दो सुयणु ! सुवगिंणदा वेणूदेवे य वेणूदाली य। दो दीवकुमारिंदा पुराणे य तहा वसिष्ठे य // 16 // दो उदहिकुमारिंदा जलकते जसपमे ये नामेणं / अभियगइ-अमियवाहण दिसाकुमाराण दो इंदा // 17 // दो वाउ. कुमारिंदा वेलंब पभंजणे य नामेण / दो थणिय-कुमारिंदा घोसे य तहा महायोसे // 18 // दो विज्जुकुमारिंदा हरिकंत हरिस्सहे य नामेणं /
SR No.004369
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1975
Total Pages152
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_chatusharan, agam_aaturpratyakhyan, agam_mahapratyakhyan, agam_bhaktaparigna, agam_tandulvaicharik, agam_sanstarak, agam_gacchachar, & agam_chandra
File Size16 MB
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