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________________ प्रकीर्णकानि- 6 श्रीसंस्तारकप्रकीर्णकम् ]. [ 46 वहरं तह संथारो सुविहिाणं // 5 // वंसाणं जिणवंसो सबकुलाणं च सावयकुलाई / सिद्धिगई य गईणं मुत्तिसुहं सव्वसुक्खाणं // 6 // धम्माणं च अहिंसा जणवयवयणाण साहुवयणाई। जिणवयणं च सुईणं सुद्धीणं दंसणं च जहा // 7 // कल्लाणं अब्भुदयो देवाणं दुलहं तिहुश्रणंमि / बत्तीसं देविंदा जं तं झायंति एगमणा // 8 // लद्धं तु तए एवं पंडिअमरणं तु जिणवरक्खायं / हंतूण कम्ममल्लं सिद्धिपडागा तुमेलद्धा // 1 // . झाणाण परमसुक्कं नाणाणं केवलं जहा नाणं / परिनिव्याणं च जहा कमेण भणियं जिणवरेहिं // 10 // सव्वुत्तमलाभाणं सामन्नं चेव लामं मन्नति / परमुत्तम तित्थयरो परमगई परमसिद्धत्ति // 11 // मूलं तह संजमो वा परलोगरयाण किलिट्ठकम्माणं / सम्वुत्तमं पहाणं सामन्नं चेव मन्नंति // 12 // लेसाण सुकलेसा नियमाणं बंभचेरवासो श्र। गुत्तिसमिई गुणाणं मूलं तह संजमोवायो // 13 // सव्वुत्तमतित्थाणं तित्थयरपयासिगं जहा तित्थं / अभिसेउव्व सुराणं तह संथारो सुविहियाणं // 14 // सियकमल-कलससत्थिय-नंदावत्तवरमल्ल-दामाणं / तेसिंपि मंगलाणं संथारो मंगलं अहिग्रं(पढम) // 15 // तवअग्गिनियमसूरा जिणवरनाणा विसुद्धपत्थयणा / जे निव्वहंति पुरिसा संथारगइंदमारूढा // 16 // परमट्ठो परमउलं परमाययणंति परमकप्पुत्ति / परमुत्तमतित्थयरो परमगई परमसिद्धित्ति / / 17 / ता एयं तुमि लद्धं जिणवयणामयविभूसिय देहं / धम्मरयणंसिया(०णस्सिया ०णामया) ते पडिया भवणंमि वसुहारा // 18 // पत्ता उत्तमपुरिसा कलाणपरंपरा परमदिव्वा / पावयण साहु धीरं(धीरी)कयं च ते अज सप्पुरिसा ! // 11 // सम्मत्तनाणदंसण-वररयणा नाणतेप्रसंजुत्ता / चारित्तसुद्धसीला तिरयणमाला तुमे लद्धा // 20 // सुविहिगुणवित्थारं संथारं जे लहंति सप्पुरिसा। तेसि जियलोगतारं रयणाहरणं कयं होइ // 21 // तं तित्थं तुमि लद्धं
SR No.004369
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1975
Total Pages152
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_chatusharan, agam_aaturpratyakhyan, agam_mahapratyakhyan, agam_bhaktaparigna, agam_tandulvaicharik, agam_sanstarak, agam_gacchachar, & agam_chandra
File Size16 MB
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