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________________ प्रकीर्णकानि :: 5 श्रीतंदुलवैचारिकप्रकीर्णकम् ] [ 29 य हवंति सयसहस्साई / दस चेव सहस्साई दोनि सया पन्नवीसा य // 7 // उस्साला निस्सासा इत्तिमित्ता हवंति संकलिया। जीवस्स गब्भवासे नियमा हीणाहिया इत्तो॥८॥ अाउसो ! इत्थीए नाभिहिट्ठा सिरादुगं पुष्फनालियागारं / तस्स य हिट्ठा जोणी श्रहोमुहा संठिया कोसा // 1 // तस्स य हिट्ठा चूयस्स मंजरी तारिसा उ मंसस्स / ते रिउकाले फुडिया सोणियलवया विमुचंति // 10 // कोसायारं जोणी संपत्ता सुक्कुमीसिया जइया / तइया जीवुववाए जोग्गा भणिया जिणिंदेहिं // 11 // बारस चेव मुहुत्ता उवरिं विद्धंम गच्छई सा उ / जीवाणं परिसंखा लक्वपुहुत्तं च उक्कोसा // 12 // पणपण्णाय परेणं जोणी पमिलायए महिलियाणं / पणसत्तरीय परयो पारण (वासेहि) पुमं भवेऽबीयो // 13 // वाससयाउयमेयं परेण जा होइ पुचकोडीयो / तस्सद्धे अमिलाया सव्वाउयवीसभागो उ॥ 14 // रत्तुकडा य इत्थी लवखपुहुत्तं च बारस मुहुत्ता। पिउसंख सयपुहुत्तं बारस वासा उ गम्भस्स // 15 // दाहिणकुच्छी पुरिसस्त होइ वामा उ इत्थियाए उ / उभ्यं. तरं नपुंसे तिरिए अट्ठव वरिसाइं // 16 // इमो खलु जीवो अम्मापिउसंयोगे माऊयोयं पिउसुक्कं तं तदुभयसंसट्ठ कलुसं किविसं तप्पढमयाए श्राहारं थाहारित्ता गम्भत्ताए वव.मइ // सू. 1 // सत्ताहं कललं होइ, सत्ताहं होइ अब्बुयं / बुया जायए पेसी, पेसीयोवि घणं भवे // 17 // तो पढमे मासे करिसूणं पलं जायई, वीए मासे पेसी संजायए घणा, तईए मासे माउए डोहलं जणेइ, चउत्थे मासे माऊए अंगाई पीणेइ पंचमे मासे पंच पिंडियायो पाणिं पायं सिरं चेव निव्वत्तेइ, छट्टे मासे पित्तसोणियं उवचिणेइ. सत्तमे मासे सत्त सिरासयाई पंच पेसीसयाई नव धमणीयो नवनउयं च रोमकूबसयसहस्साई(११०००००) निव्वत्तेइ, विणा केसमंसुणा, सह केसमंसुणा श्रद्धट्ठायो रोमकूवकोडीउ निव्वत्तेइ (35000000), अट्ठमे मासे वित्तीकप्पो हवइ // सूत्रं 2 // जीवस्स णं भंते ! गभगयस्स समाणस्स
SR No.004369
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1975
Total Pages152
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_chatusharan, agam_aaturpratyakhyan, agam_mahapratyakhyan, agam_bhaktaparigna, agam_tandulvaicharik, agam_sanstarak, agam_gacchachar, & agam_chandra
File Size16 MB
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