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________________ श्रीराजप्रश्नीय-सूत्रम् ] [ 77 अरहताणं नाम-गोयस्स वि सवणयाए किमंग पुण अभिगमण-वंदण-नमंसण-पडिपुच्छण-पज्जुवासणयाए ? तं सेयं खलु एगस्स वि पारियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए ? तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया ! समणं भगवं महावीरं वंदामो णमंसामो सकारेमो सम्माणेमो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेमो, एयं तं इहभवे एमो र दिपाए सुहाए समाए सिरसपसाए प्राणुणमिलाए मरिसर, तए णं यामलकप्पाए नयरीए बहवे उग्गा उग्गपुत्ता भोगा भोगपुत्ता राइराणा राइराणपुत्ता खत्तिया खत्तियपुत्ता भडा भडपुत्ता जोहा जोहपुत्ता पसस्थारो मलाई मलइपुत्ता लेछई लेख्छइपुत्ता अराणे य बहवे राईसरतलवर-माडंबिय-कोडविय-इब्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाहप्पभितयो अप्पेगइया वंदणवत्तियं अप्पेगइया पूयणवत्तियं एवं सकारवत्तियं सम्माणवत्तियं दंसणवत्तियं कोऊहलवत्तियं, अप्पेगइया अविणिच्छयहेउं-अस्सुयाई सुणेस्सामो सुयाई निस्संकियाइं करिस्सामो, अप्पेगइया अट्ठाई हेऊई कारणाई वागरणाई पुच्छिस्सामो, अप्पेगइया सव्वयो समंता मुडे भवित्ता अगारात्रो अणगारियं पव्वइस्सामो, पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवजिस्सामो, अप्पेगइया जिणभत्तिरागेणं अप्पेगइया 'जीयमेयं' ति कट्टु राहाया कयवलिकम्मा कयकोउय-मंगलपायच्छित्ता सिरसा कठे मालकडा पाविद्धमणिसुवराणा कप्पियहार-श्रद्धहार-तिसर-पालब-पलंबमाणकडिसुत्तय-कयसोहाभरणा पवरवत्थपरिहिया चंदणोलित्त-गायसरीरा, अप्पेगइया हयगया, एवं गयगया रहगया सिवियागया संदमाणियागया, अप्पेगइया पायविहारचारेणं पुरिसवग्गुरापरिक्खित्ता महया उकिट्ट-सीहणाय-बोलकलकलरवेणं पक्खुब्भिय-महासमुद्दरवभूयं पिव करेमाणा श्रामलकप्पाए नयरीए मझमझेणं णिग्गच्छंति णिग्गच्छित्ता जेणेव अंबसालवणे चेइए तेणेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता समणस्स भगवश्रो महावीरस्स अदूरसामंते
SR No.004366
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1977
Total Pages456
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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