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________________ श्रीजीवाजीवाभिगम-सूत्रम् : तृतीया प्रतिपत्तिः ] [ 245 जीवा सब्वे सत्ता पुढवीकाइयत्ताए जाव वणस्सइकाइयत्ताए नेरइयत्ताए उववन्नपुब्बा ?, हंता गोयमा ! असति अदुवा अणंतखुत्तो, एवं जाव अहसत्तमाए पुढवीए णवरं जत्थ जत्तिया णरका / [ इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए निरयपरिसामंतेसु जे पुढविकाइया जाव वणप्फतिकाइया ते णं भंते ! जीवा महाकम्मतरा चेव महाकिरियतरा चेव महाभासवतरा चेव महावेयमातरा चेव ?, हंता गोयमा !इमीसे णं भिंते !] रयणप्पभाए पुढवीए निरयपरिसामंतेसु तं व जाव महावेदणतरका चेव, एवं जाव अधेमत्तमा ] // सू० 13 // पुढ़वीं श्रोगाहित्ता, नरगा संठाणमेव बाहल्लं / विक्खंभपरिक्खेवे वगणो गंधो य फासो य // 1 // तेसिं महालयाए उवमा देवेण होइ कायब्वा / जीवा य पोग्गला वकमंति तह सासया निरया // 2 // उववायपरीमाणं अवहारुचत्तमेव संघयणं / संठाणवरणगंधा फासा ऊसासमाहारे // 3 // लेसा दिट्ठी नाणे जोगुवोगे तहा समुग्घाया। तत्तो खुहापिवासा विउठवणा वेयणा य भए // 4 // उववायो पुरिसाणं श्रोवम्मं वेयणाए दुविहाए / उव्वट्टणपुढवी उ, उववायो सव्वजीवाणं // 5 // एयात्रा संगहणिगाहायो / सू० 14 // चउविहपडिवत्तीए बीश्रो उद्दे. सयो समत्तो॥ // इति तृतीय प्रतिपत्तौ नरकाधिकारे द्वितीय उद्देशकः // 3-1-2 // // अथ चतुर्विधाख्य-तृतीयप्रतिपत्तौ नरकाख्य-तृतीयोद्देशकः॥ इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरतिया केरिसयं पोग्गलपरिणामं पचणुभवमाणा विहरंति ?, गोयमा ! अणि? जाव श्रमणाम, एवं जाव अहेसत्तमाए ( एवं नेयवं-पुग्गलपरिणामे वेयणा य लेसा य नामगोए य / अरई भए य सोगे, खुहा पिवासा य वाट्ठी य // 1 // उस्सासे अणुतावे कोहे माणे य मायलोभे य / चत्तारि य सन्नायो नेरइयाणं तु
SR No.004366
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1977
Total Pages456
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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