________________ 146 ] : [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / चतुर्थो विभागः ते मागंदिया जाहे नो संचाएति बहूहिं पडिलोमेहिय उवसग्गेहिं य चालित्तए वा खोभित्तए वा विप्परिणामित्तए वा लोभित्तए वा ताहे महुरेहि सिंगारेहि य कलुणेहि य उवसग्गेहि य उवसग्गेउं पयत्ता यावि होत्था, हं भो मागंदियदारगा ! जति णं तुम्भेहिं देवाणुप्पिया ! मए सद्धिं हसियाणि य रमियाणि य ललियाणि य कीलियाणि य हिंडियाणि य मोहियाणि य ताहे णं तुम्भे सव्वाति अगणेमाणा ममं विप्पजहाय सेलएणं सद्धिं लवणसमुदं मझमज्झेणं वीइवयह 3 / तते णं सा रयणदीवदेवया जिणरक्खियस्स मणं श्रोहिणा आभाएति अाभोएत्ता एवं वदासी-णिच्चंपिय णं श्रहं जिणपालियस्स अणिट्ठा 5 निव्वं मम जिणपालिए अणि? 5 निच्चंपिय णं अहं जिणरक्खियस्स इट्टा 5 निच्चंपिय णं ममं जिणरक्खिए इ8 5, जति णं ममं जिणपालिए रोयमाणी कंदमाणी सोयमाणी तिप्पमाणीं विलवमाणी गावयक्खति किराणं तुमं जिणरक्खिया ! ममं रोयमाणिं जाव णावयक्खसि ?, तते णं-'सा पवररयणदीवस्स देवया श्रोहिणा उ जिणरक्खियस्त मणं / नाऊण वधनिमित्तं उवरि मागंदियदारगाणं दोराहंपि // 1 // दोसकलिया सललियं णागाविहचुराणवासमीसं(सियं) दिव्वं / घाणमण-निव्वुइकरं सव्वोउय-सुरभि-कुसुमवुट्टि पमुचमाणी // 2 // णाणा-मणि-कणग-रयण-घंटिय-खिखिणि-णेऊर-मेहल भूसणरवेणं / दिसायो विदिसायो पूरयंती वयणमिणं बेति सा सकलुसा // 3 // होल वसुल गोल णाह दइत पिप रमण कंत सामिय णिग्घिण णित्थक / छि(थि)राण णिकिव यकयराणुय सिढिलभाव निल्लज्ज लुक्ख अकलुण जिणरक्खिय मझ हिययरक्खगा ! // 4 ॥णहु जुज्जसि एक्कियं अणाहं प्रबंधवं तुझ चलण-प्रोवाय-कारियं उझिडं महराणं / गुणसंकर ! अहं तुमे विहूणा ण समस्थावि जीविउं खणंपि // 5 // इमस्स उ अणेग-झस-मगर-विविध-सावयसयाउलघरस्स / रयणागरस्स मज्मे अप्पाणं वहेमि तुझ पुरश्रो एहि