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________________ श्रीमत्स्थानाङ्गसूत्रम् :: अध्ययनं 4 ] [ 345 पन्नत्ता तंजहा-जुत्ते णाममेगे जुत्ते 4, 10 / एवं जधा जाणेण चत्तारि बालावगा तथा जुग्गेणऽवि, पडिपक्खो तहेव पुरिसजाता जाव सोभेत्ति 11 // चत्तारि सारही पन्नत्ते तंजहा-जोयावइत्ता णामं एगे नो विजोयावइत्ता, विजोयावइत्ता नाम एगे नो जोयावइत्ता एगे जोयावइत्तावि विजोयावइत्तावि, एगे नो जोयावइत्ता नो विजोयावइत्ता 12 / एवामेव चत्तारि हया पन्नत्ता तंजहा-जुत्ते णामं एगे जुत्ते जुत्ते णाममेगे अजुत्ते 4, 13 / एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता तंजहा--जुत्ते णाममेगे जुत्ते 4, एवं जुत्तपरिणते जुत्तरूवे जुत्तसोभे सव्वेसि पडिवक्खो पुरिसजाता 14 / चत्तारि गया पन्नत्ता तंजहा--जुत्ते णाममेगे जुत्ते 4, 15 // एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता तंजहा--जुत्ते णाममेगे जुत्ते 4 एवं जहा हयाणं तहा गयाणवि भाणियव्वं, पडिवक्खो तहेव पुरिसजाया 16 / चत्तारि जुग्गारिता (जुग्गायरिता) पन्नत्ता तंजहा-- पंथजाती णाममेगे णो उप्पहजाती, उप्पथजाती णाममेगे णो पंथजाती एगे पंथजातीवि उप्पहजातीवि, एगे णो पंथजाती णो उप्पहजाती, एवामेव चत्तारि पुरिसजाया 17 / चत्तारि पुष्फा पन्नत्ता तंजहा-रूवसंपन्ने नाममेगे णो गंधसंपन्ने, गंधसंपन्ने णाममेगे नो रूवसंपन्ने, एगे रूवसंपन्नेऽवि गंधसंपन्नेऽवि एगे णो रूवसंपन्ने णो गंधसंपन्ने, 18 / एवामेव चत्तारि पुरिसजाता पन्नत्ता तंजहा--रूवसंपन्ने णाममेगे णो सीलसंपन्ने 4, 11 / चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता तंजहा--जातिसंपन्ने नाममेगे नो कुलसंपन्ने 4, 2, 1 / चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता तंजहा -जातिसंपराणे नामं एगे णो बलसंपन्ने बलसंपन्ने नामं एगे णो जातिसंपन्ने 4, 2 / एवं जातीते रूवेण चत्तारि थालावगा एवं जातीते सुरण 4, एवं जातीते सीलेण 4, एवं जातीते चरितेण 4, एवं कुलेण बलेण 4, एवं कुलेण रूवेण 4, कुलेण सुतेण 4, कुलेण सीलेण 4, कुलेण चरित्तेण 4, चत्तारि पुरिसजाता पन्नत्ता तंजहा-- बलसंपराणे नाममेगे णो रूवसंपन्ने 4, 12, एवं बलेण सुतेण 4, 13,
SR No.004362
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 03 of 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1975
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size22 MB
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