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________________ श्रीमत्स्थानाङ्गसूत्रम् :: अध्ययनं 4 ] [ 343 त्तितं करेति, 3 / चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता तंजहा-अप्पणो णाममेगे पत्तितं करेति णो परस्म, परस्स नाममेगे पत्तियं करेति णो अपणो (4) हू, 4 / चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता तंजहा-पत्तियं पवेसामीतेगे पत्तितं पवेसेइ पत्तियं पवेसामीतेगे अप्पत्तितं पवेसेति 4,5/ चत्तारि पुरिसजाता पन्नत्ता तंजहाअप्पणो नाममेगे पत्तितं पवेसेइ णो परस्म, परस्स 4 र 6 ॥सू. 312 // चत्तारि रुक्खा पत्नत्ता तंजहा - पत्तोवए पुप्फोवए फलोवए बायोवए, एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता तंजहा-पत्तोवारुक्खसमाणे पुप्फोवारुखसमाणे फलोवारुक्खसमाणे छातोवारुक्खसमाणे ॥सू० 313 // भारगणं वहमाणस्त चत्तारि श्रासासा पन्नत्ता, तंजहा-जत्थ णं अंसातो ग्रंसं साहरइ तत्थविय से एगे श्रासासे पराणत्ते 1, जत्थविय णं उच्चारं वा पासवणं वा परिहावेति तत्थविय से एगे यासासे पराणत्ते 2, जत्थविय णं णागकुमारावासंसि वा सुवनकुमारावासंसि वा वासं उवेति तत्थविय से एगे श्रासासे पन्नत्ते 3, जत्थविय णं श्रावधाते चिट्ठति तत्थविय से एगे पासासे पन्नत्ते 4, 1 / एवामेव समणोवासगस्स चत्तारि श्रासासा पन्नत्ता तंजहा-जत्थ णं सीलव्वतगुणवतवेरमणपञ्चक्खाणपोसहोववासाइं पडिवज्जेति तत्थविथ से एगे श्रासासे पराणत्ते 1, जत्थविय णं सामाइयं देसावगासियं सम्ममणुपालेइ तत्थविय से एगे श्रासासे पन्नत्ते 2, जत्थऽविय णं चाउद्दसट्टमुद्दिट्ठपुन्नमासिणीसु पडिपुन्नं पोसहं सम्मं अणुपालेइ तत्थवि य से एगे श्रासासे पराणत्ते 3, जत्थवि य णं अपच्छिममारणंतितसंलेहणाजूसणाजूसिते भत्तपाणपडितातिक्खिते पायोवगते कालमणवकंखमाणे विहरति तत्थविय से एगे पासासे पन्नत्ते 4, 2 ॥सू० 314 // चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता तंजहा-उदितोदिते णाममेगे उदितत्थमिते णाममेगे अत्थमितोदिते णाममेगे अत्यमियत्थमिते णाममेगे, भरहे राया चाउरंतचक्कवट्टी णं उदितोदिते, बंभदत्ते णं राया चाउरंतचकवट्टी उदिअत्थमिते, हरितेसबले णमणगारे णमत्थमिश्रोदिते, काले णं
SR No.004362
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 03 of 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1975
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size22 MB
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