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________________ [29 श्री आ चारागसूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 6 ] तं सुणेह जहा तहा संति पाणा अंधा तमसि विवाहिया, तामेव सई यसई ग्रइयच उच्चावयफासे पडिसंवेएइ, बुद्धेहिं एवं पवेइयं-संति पाणा वासगा रसगा उदए उदए चरा यागासगामिणो पाणा पाणे किलेसंति, पास लोर महब्भयं सू. 177 // बहुदुक्खा हु जन्तबो, सत्ता कामेसु माणवा, अबलेण वहं गच्छन्ति सरीरेणं पभंगुरेण घट्ट से बहुदुक्खे इइ वाले पकुबइ एए रोगा बहू नचा ग्राउरा परियावए नालं पास, ग्रलं तवेएहिं, एयं पास मुणी! महब्भयं नाइवाइज्ज कंचणं ।सू. 178 // प्रायाण भो सुस्सूस ! भो धूयवायं पवेयइस्सामि, (धुतोवायं पवेयंति) इह खनु अत्तत्ताए तेहिं तेहिं कुलेहिं अभिसेएण अभिसंभूया अभिसंजाया अभिनिब्बुडा यभितंबुड्डा अभिसंबुद्धा अभिनिक्कता अणुपुव्वेण महामुणी सू. 176 // ___ तं परिकमंतं परिदेवमाणा मा चयाहि इय ते वयंति-छंदोवणीया यझोववन्ना अक्कंदकारी जणगा स्यंति अतारिसे मुणी (ण य) योहं तरए जणगा जेण विप्पजटा, सरणं तत्थ नो समेइ, कहं नु नाम से तत्थ रमइ ?, एयं नाणं सया समणुवासिज्जासि त्ति बेमि ।।सू० 180 // // इति प्रथमोदेशकः // 6-1 / / // अध्ययन-६ :: उद्देशकः-२ // ग्राउरं लोगमायार चइत्ता पुवसंजोगं हिचा उवसमं वसित्ता बंभचे. रंसि वसु वा अणुवसु वा जाणित्तु धम्मं यहा तहा ग्रहेगे तमचाइ कुसीला ॥सू. 181 // वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुछणं विउसिज्जा, अणुपुब्वेण यणहियासेमाणा परीसहे दुरहियासए, कामे ममायमाणस्स इयाणिं वा मुहुत्तेण वा अपरिमाणाए भेए, एवं से अंतराएहिं कामेहिं याकेवलिएहिं ग्रवइन्ना चेए ॥सू० 182 // ग्रहेगे धम्ममायाय पायाणप्पभिइसु पणिहिए चरे अप्पलीयमाणे दढे सव्वं गिद्धिं परिन्नाय, एस पणए महामुणी,
SR No.004360
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 01 of 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1974
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size16 MB
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