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________________ 16 ] [ श्रीमदगिमसुधासिन्धुः : प्रथमो विभागः संकुचमाणे पसारेमामो विणिवट्टमाणे संपलिज्जमाणे, एगया गुणसमियस्स रीयत्रो कायसंकासं समणुचिन्ना एगतिया पाणा उद्दायंति, इहलोग वेरणविजावडियं, जं पाउट्टिकयं कम्मं तं परिनाय विवेगमेइ, एवं से अप्पमाएण विवेगं किट्टइ वेयवी ॥सू. 158 // से पभूयदंसी पभूयपरिन्नाणे उवसंते समिए सहिए सयाजए, द? विष्पडिवेएइ अप्पाणं किमेस जणो करिस्मइ ? एस से परमारामो जाओ लोगमि इत्थीयो, मुणीणा हु एवं पवेइय, उव्वाहिजमाणो, गामधम्मेहिं अबि निब्बलासए अवि योमोयरियं कुन्जा,. अवि उट्ठ अणं ठाइजा, अवि गामाणुगाम दूइज्जिज्जा, अवि थाहारं वुच्छिदिज्जा, अवि चए इत्थीसु मणं, पुव्वं दडा पच्छा फासा, पुत्वं फासा पच्छा दंडा, इच्चेर कलहासंगकरा भवंति, पडिलेहाए श्रागमित्ता पाणविज्जा अणासेवणाए तिबेमि, से नो काहिए नो पासणिए नो संपसारणिए नो मामए णो कपकिरिए बइगुत्ते अभयसंवुडे परिवज्जइ सया पावं एवं मोणं समणुवासिज्जासि त्तिवेमि ॥सू. 156 // // इति चतुर्थ उद्देशकः // 5-4 // // अध्ययनं-५ : उद्देशकः-५ // से बेमि तं जहा-यवि हरए पडिपुराणे समंसि भोमे चिटइ उवसंतरए सारक्खमाणो, से चिट्ठइ सोयमझमए से पास सवश्रो गुत्ते, पास लोए महेसिणो जे य पन्नाणमंता पदुद्धा प्रारम्भोवरया सम्ममेयंति पासह, कालस्स कंखाए परिव्वयंति त्ति बेमि ।।सू० 160 // वितिगिच्छसमावन्नेणं अप्पाणेणं नो लहइ समाहि, सिया वेगे अणुगच्छंति असिता वेगे अनुगच्छंति अणुगच्छमाणेहिं अणणुगच्छमाणे कह न निविज्जे ? सू० 161 // तमेव सच्चं नीसंकं जं जिणेहिं पवेड्यं ॥सू. 162 // सड्डिस्स णं समणुनस्स संपवयमाणस समियंति मन्नमाणस्स एगया समिया होइ 1, समियंति मन्नमाणस्स एगया असमिया होइ 2, असमियंति मन्नमाणस एगया समिया
SR No.004360
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 01 of 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1974
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size16 MB
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