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________________ ( lxvi ) बौद्ध धर्म में देवों को अवधारणा ___ बौद्ध धर्म में प्राणियों को नारक, तिर्यञ्च, प्रेत, मनुष्य और देवता इन पांच विभागों में वर्गीकृत किया गया है। तुलनात्मक दृष्टि से विचार करने पर हम यह पाते हैं कि जहां जैन परम्परा में प्रेत, असुर आदि को देव निकाय में वर्गीकृत किया गया है वहां बौद्ध परम्परा उन्हें स्वतन्त्र निकाय के रूप में प्रस्तुत करती है। यद्यपि उनकी शक्ति आदि के विषय में देवों के समान ही उल्लेख प्राप्त होता है। इस प्रकार तुलनात्मक दष्टिं से देवनिकाय की चर्चा के प्रसंग में बहत अधिक अन्तर नहीं रह जाता है। बौद्ध परम्परा लोक को अपायभूमि, कामसुगतभूमि, रूपावचरभूमि और अरूपावचरभूमि ऐसे चार भागों में वर्गीकृत करती है। जैन परम्परा से तुलनात्मक दृष्टि से विचार करने पर, जो जेनों का अधोलोक है वह बौद्धों की कामावचर अपाय भूमि है, जो जैनों का तिर्यक् या मध्यलोक है वही बौद्धों की कामसुगति भूमि है, जनों ने जिसे ऊर्ध्व लोक कहा है वह बौद्धों की रूपावचर भूमि है और जैनों का जो सिद्ध लोक या लोकाग्र है वही बौद्धों के अनुसार अरूपावचर भूमि है। यद्यपि यहां एक महत्त्वपूर्ण अन्तर यह है कि जहां बौद्ध-परम्परा इस अरूपावचर भूमि को भी ऐसे देवों का निवास मानती हैं जो रूप रहित मात्र एक चेतना प्रवाह है, वहीं जैनपरम्परा इसे निर्वाण या मोक्ष प्राप्त आत्माओं का निवास स्थान मानती है। बौद्ध परम्परा में इसके सम्बन्ध में कोई स्पष्ट अवधारणा नहीं है कि सिद्ध अस्तित्व रखता है या नहीं, अगर रखता है तो कहां? यहां हम इस समस्त विवेचन में विस्तार से चर्चा नहीं करके देव-निकाय के सम्बन्ध में ही तुलनात्मक दृष्टि से विचार करेंगे। जिस प्रकार जैन मान्यतानुसार देव-निकाय के प्राणी अधो, ऊर्ध्व और मध्य तीनों लोकों में निवास करते हैं, उसी प्रकार बौद्ध परम्परा में भी यदि हम प्रेतों को देव-निकाय का अंग मान ले तो यहाँ भी इस वर्ग का निवास कामावचर अपाय भूमि (अधोलोक ) कामावचरसुगत भूमि (मध्य लोक ), रूपावचर भूमि (ऊर्ध्वलोक) और अरूपावचर भूमि (सिद्ध लोक ) में पाया जाता है। यहां यह स्मरण रखना चाहिए कि अरूपावचर भूमि में जिन देवों की कल्पना की गयी है वे वस्तुतः जैनों के सिद्धों के अनुरूप अरूपो और शुद्ध चेतना मात्र है, अन्तर केवल यह है
SR No.004356
Book TitleDevindatthao
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages230
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_devendrastava
File Size12 MB
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