SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 4
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकाशकीय जयपुरी चित्रकला के उत्कृष्ट 25 बहुरंगी चित्रों के साथ “जिन दर्शन चौवीसी' को प्राकृत भारती के 83 वे पुष्प के रुप में प्रकाशित करते हुए हमें अत्यधिक प्रसन्नता है। लगभग 55-60 वर्ष पूर्व जयपुर पेलेस के प्रसिद्ध चित्रकार श्री बद्रीनारायणजी ने अपनी सूक्ष्म तूलिका एवं अनोखी सूझबूझ के साथ विविध रंगों में इन चित्रों का अंकन/निर्माण किया था। यह निर्माण कार्य उन्होंने तत्कालीन जयपुर में स्थित जैन स्थापत्य, मूर्तिकला, चित्रकला तथा ज्योतिष शास्त्र के प्रसिद्ध जैन विद्वान स्व0 पंडित भगवानदासजी जैन के परामर्श एवं निरीक्षण में किया था। यही कारण है कि ये सभी चित्र शास्त्रानुसार प्रमाणोपेत बन सके। इन चित्रों का यह वैशिष्ट्य है कि प्रत्येक तीर्थकर का चित्र अष्ट महाप्रातिहार्य, वर्ण एवं लंछन संयुत है। चित्र के आजू बाजू में शासन देव-देवियों के चित्र भी शास्त्रीय-पद्धति से उनके वर्ण, स्वरूप एवं आयुधों के साथ अंकित किये गये हैं। पच्चीसवां चित्र सूरिमन्त्राधिष्ठाता सर्वलब्धिनिधान गौतमस्वामी का है और इस चित्र के चारों दिशाओं में क्रमशः सरस्वती, त्रिभुवन स्वामिनी, लक्ष्मी एवं गणिपिटक यक्षराज के चित्र हैं। श्री बद्रीनारायण ने निर्माणोपरान्त ये सभी चित्र गुरुभक्तिवश पं0 भगवानदासजी जैन को सप्रेम अर्पित कर दिये थे। पं0 भगवानदासजी ने इन चित्रों को "आदर्श जैन दर्शन चौवीसी और अनानूपूर्वी' के नाम से वीर संवत 2466, विक्रम संवत 1996, ईस्वी सन् 1939 में स्वयं ने ही प्रकाशित किये थे। कलापूर्ण चौवीसी होने से समाज ने भी इसे अच्छा सम्मान दिया। फलतः यह प्रथमावृत्ति कुछ ही समय में अप्राप्त हो गई थी।
SR No.004352
Book TitleJin Darshan Chovisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakrit Bharti Academy
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages86
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy