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________________ तत्त्वसार एकविंशति-पञ्चत्रिशदेकोनपनाशदिनैः सम्पूर्णकाया भवन्ति / षोडशवार्षिकमनुष्ययुवानश्चैकरूपाः सन्ति / मनुष्यगतिरिति / अथ देवगतिरिति मध्यम् / भवनवासि-व्यन्तर-ज्योतिष्क-कल्पवासिनां चतुर्णिकायानां देवानां यथाक्रमेण भेदानाह। तथा च-भवनवासिनोऽसुरनागविद्युत्सुपर्णाग्निवातस्तनितोदधिद्वीपदिपकुमारा इति वशप्रकारा भवन्ति / तेषामुष्टायुः सागरोपममेकं जघन्यं च वर्षाणां दशसहत्राणि / उत्कृष्ट उत्सेधः पञ्चविंशतिषनषि, जघन्यश्च धनुषां वश / षोडशसहस्रयोजनप्रमाणखरभूमिमध्यभवनेषु निवसन्ति / ___ तथैव किन्नर-किम्पुरुष-महोरग-गन्धर्व-यक्ष-राक्षस-भूतपिशाचा इत्यष्टप्रकारा व्यन्तरास्तत्रैव खर-पङ्कबहुलपृथ्वीमध्ये निवासिनश्च / उत्कृष्ट: शरीरोत्सेधो वश धनूंषि / तेषां जघन्यमायुः वर्षाणि वश सहस्राणि / उत्कृष्ट पल्यमेकं किञ्चिदूनम् / तेषां व्यन्तराणामाहारः साबपञ्चभिर्वासरः, तथाविर्षमुंहतरच्छवासो भवति 5 / इति द्वितीयनिकाया व्यन्तराः। - बथ तृतीयनिकायः-सूर्याचनमसो पह-नक्षत्र-प्रकोणकतारकास्याः पञ्चप्रकारा ज्योतिष्काः। तेषां मध्ये तारकाः कथ्यन्ते-समपरातलादूवं गत्वा शतान्यष्टो पशोनानि योजनानि तारकाणां विमानानि चलरूपाणि सन्ति / ततो योजनानि गत्वा सूर्याणां विमानानि / तत ऊर्ध्वमशीतिर्यो भूमिके जीव उनचास दिनोंमें सम्पूर्ण शरीरके धारक हो जाते हैं। वहांके मनुष्य सोलह वर्ष जैसे जवान और एकरूप होते हैं / इस प्रकार मनुष्यगतिका वर्णन किया। . अब इससे आगे देवगतिका वर्णन करते हैं। देवोंके चार निकाय हैं-भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिष्क और कल्पवासी / अब इनके यथाक्रमसे भेद कहते हैं। भवनवासीदेव दश प्रकारके होते हैं-असुरकुमार, नागकुमार, विद्युत्कुमार, सुपर्णकुमार, अग्निकुमार, वातकुमार, स्तनितकुमार, उदधिकुमार, द्वीपकुमार और दिक्कुमार / इनकी उत्कृष्ट आयु एक सागरोपम और जघन्य आयु दश हजार वर्षकी होती है। शरीरकी उत्कृष्ट ऊंचाई पच्चीस धनुष और जघन्य ऊंचाई दश धनुष प्रमाण है। रत्नप्रभा भूमिका जो सोलह हजार योजन-प्रमाण खरभूमिभाग है, उसके मध्यमें स्थित भवनोंमें ये देवनिवास करते हैं। दूसरा निकाय व्यन्तर देवोंका है। वे किन्नर, किम्पुरुष, महोरग, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, भत और पिशाचके भेदसे आठ प्रकारके होते हैं। उसी रत्नप्रभा पथिवीके खरभाग और पंक बहुलभागके मध्यमें ये व्यन्तर देव निवास करते हैं। इनके शरीरकी उत्कृष्ट ऊंचाई दश धनुष है / उनकी जघन्य आयु दश हजार वर्ष है और उत्कृष्ट आयु कुछ कम एक पल्य प्रमाण है। इन व्यन्तर देवोंका आहार साढ़े पांच दिनोंके बाद होता है, तथा साढ़े पांच मुहूर्तोंके बाद वे श्वासोच्छ्वास लेते हैं / इस प्रकार दूसरे निकायवाले व्यन्तर देवोंका वर्णन किया। अब तीसरे निकायवाले ज्योतिष्क देवोंका वर्णन करते हैं वे ज्योतिष्क देव पांच प्रकार के होते हैं-सर्य, चन्द्रमा. ग्रह, नक्षत्र और तारका। इनमेंसे पहिले तारकाओंको कहते हैं-मध्यलोकके समधरातलसे ऊपर दश कम आठ सौ (790) योजन जाकर तारकाओंके विमान (अढ़ाई द्वीपमें) चलते हैं। उनसे दश योजन ऊपर जाकर सूर्योंके विमान हैं। उनसे अस्सी योजन ऊपर
SR No.004346
Book TitleTattvasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Siddhantshastri
PublisherSatshrut Seva Sadhna Kendra
Publication Year1981
Total Pages198
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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