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________________ 52 तत्त्वसार स्त्रियो व्यभिचारिण्यो गच्छन्ति / सप्तम्या भूमौ पापकर्मोक्यतो मनुष्याः मत्स्याश्च मृताः यान्ति। सप्तमनरकान्निःसृता मनुष्या न भवन्ति, किन्तु तियश्चः सिंहादयो जायन्ते / षष्ठनरकानिर्गताः केचन मनुष्या भवन्ति, संयम न प्राप्नुवन्ति / पञ्चमान्निर्गता मनुष्याः संयमिनश्च भवन्ति, केवलज्ञानं न प्राप्नुवन्ति / चतुर्थनरकादागता मनुष्याः संयमिनो मोक्षगामिनो भवन्ति, तीर्थकरा न भवन्ति / तृतीय-द्वितीय-प्रथमनरकेन्यो निर्गता मनुष्याः संयमिनस्तीर्थकराश्च भवन्ति / अथ सप्ताषोभूमीषु नारकाणां नरकगतीषु सम्यक्त्वोत्पत्तिविशेषमाह। तथाहि-सर्वासु पृथ्वीषु नारकाणां पर्याप्तकानामौपशमिकं क्षायोपशमिकं सम्यक्त्वद्वयमुत्पद्यते। प्रथमायां पृथिव्यां पर्याप्तकानां क्षायिकं चास्ति। तत्र सर्वेषां नारकाणां नपुंसकलिङ्गमस्ति केवलम्, स्त्री-पुल्लिगद्वयं नास्ति / संस्थानं हुण्डकमेव / ते सर्वे नारकाः पञ्चेन्द्रियाः संज्ञिनश्च भवन्ति / .. .. तीव्रपापकर्मोदयात्कृष्टेन कस्मिन् कस्मिन्नरके कति-कतिवारान् यान्ति दुष्टजीवा इत्याह / तद्यथा-सप्तम्यां च नियमाद द्विवारं यान्ति सततमुत्कृष्टो जघन्यनैकवारम् 1 / तथा षष्ठयां त्रीन् वारान् यान्ति 3 / पञ्चम्यां चतुरो वारान् 4 / चतुर्थ्या पश्चवारान् 5 / तृतीयायां षट् वारान् 6 / द्वितीयायां सप्तवारान् / प्रथमायामष्टो वारान यान्ति 8 / तथा चोक्तं त्रैलोक्यदीपके नरकभूमिमें जाते हैं। पापिनी व्यभिचारिणी स्त्रियां छठी नरकभूमिमें जाती हैं / सातवीं नरकभूमिमें पापकर्मके उदयसे मनुष्य और मत्स्य मरकर उत्पन्न होते हैं। ___ सातवें नरकसे निकले हुए जीव मनुष्य नहीं होते हैं, किन्तु सिंहाद्रिक क्रूर तिर्यच होते हैं। छठे नरकसे निकले हुए कितने ही जीव मनुष्य तो होते हैं, किन्तु संयमको धारण नहीं कर पाते हैं। पांचवें नरकसे निकले हुए जीव मनुष्य और संयमके धारक तो होते हैं, किन्तु केवलज्ञानको प्राप्त नहीं करते हैं / चौथे नरकसे निकले हुए जीव मनुष्य, संयमी और मोक्षगामी तो होते हैं, किन्तु तीर्थंकर नहीं होते हैं। तीसरे, दूसरे और पहिले नरकसे निकले हुए जीव मनुष्य, संयमी और तीर्थंकर होते हैं। अब सातों अधोभूमियोंवाली नरकगतियोंमें सम्यक्त्वकी. उत्पत्तिके विशेषको कहते हैं। यथा-सभी पृथिवियोंमें पर्याप्तक नारकोंके औपशमिक और क्षायोपशमिक ये दो सम्यक्त्व उत्पन्न होते हैं / पहिली पृथिवीमें पर्याप्तक नारकोंके क्षायिक सम्यक्त्व भी होता है। उन सभी नारकोंके केवल एक नपुंसक लिंग ही होता है, स्त्रीलिंग और पुल्लिग ये दो लिंग नहीं होते / सभी नारकोंके एक हुण्डक संस्थान ही होता है। वे सभी नारकी पंचेन्द्रिय और संज्ञी होते हैं। अब तीव्र पापकर्मके उदयसे किस-किस नरकमें दुष्ट जीव अधिकसे अधिक कितने-कितने बार जाते हैं, यह बतलाते हैं यथा-सातवीं नरकभूमिमें नियमसे लगातार उत्कृष्टतः दो बार जाते हैं और जघन्यतः एक बार जाते हैं। छठी नरकभूमिमें तीन बार जाते हैं 3 / पांचवीं नरकभूमिमें चार बार जाते हैं 4 / चौथी नरकभूमिमें पांच बार जाते हैं 5 / तीसरी नरकभूमिमें छह बार जाते हैं 6 / दूसरी नरकभूमिमें सात बार जाते हैं 7 / और पहिली नरकभूमिमें आठ बार जाते हैं 8 / जैसा कि त्रैलोक्यदीपकमें कहा है
SR No.004346
Book TitleTattvasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Siddhantshastri
PublisherSatshrut Seva Sadhna Kendra
Publication Year1981
Total Pages198
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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