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________________ तत्त्वसार तथाहि-अस्त्येव, नास्त्येव, नित्यमेव, अनित्यमेव, एकमेवानेकमेव, तत्त्वमित्यादि सर्वथा अवधारणरूपोऽभिप्राय एकान्तमिथ्यात्वं नाम 1 / अहिंसाविलक्षण-सद्धर्मफलस्य स्वर्गापवर्गस्य हिंसादिपापफलत्वेन परिच्छिन्दानोऽभिप्रायो विपरीतमिथ्यात्वम् 2 / सम्यग्दर्शनादिनिरपेक्षण देव-गुरुपादपूजादिलक्षणेन विनयेनैव मोक्ष इत्यभिप्रायो बैनयिकमिथ्यात्वं नाम 3 / प्रत्यक्षाविना प्रमाणेन परिगृह्यमानस्यार्थस्य देशान्तरे कालान्तरे चैव स्वरूपावधारणोपपत्तेस्तत्स्वरूपनिरूपकानामाप्तानामभिमानदंदह्यमानानामपि परस्परविरुद्धशास्त्रोपदेशकानामवञ्चकत्वनिश्चयाभावादिदमेव तत्त्वमिदं न भवतीति परिच्छत्तमशक्यमित्युभयाशावलम्बनाभिप्रायः संशयमिथ्यात्वं नाम 4 / विचार्यमाणे जीवादिपदार्था न तिष्ठन्ति, ततः सर्वमज्ञानमेव, ज्ञानं नास्तीत्यभिनिवेशः अज्ञानमिथ्यात्वं नाम 5 / . एयंत बुद्धदरिसो विवरीओ बह्म तावसो विणओ। इंदो विय संसइयो मक्कडिको चेव अण्णाणी // 8 // ... . मिच्छत्तं वेदंतो जीवो विवरीयदसणो होदि। ण य.षम्म रोचेदि हु महुरं खु रसं जहा जरिदो // 1 // मिच्छाइट्ठी जीवो उवइटुं पवयणं ण सद्दहदि / सद्दहदि असब्भावं उवइटुं वा अणुवइटुं च // 10 // एकान्त आदि मिथ्यात्वोंका खुलासा इस प्रकार है-वस्तु तत्त्व अस्तिरूप ही है, नास्तिरूप ही है, नित्य ही है, अनित्य ही है, एक ही है, अनेक ही है, इत्यादि सर्वथा 'ही' इस अवधारणारूप अभिप्रायका नाम एकान्त मिथ्यात्व है 1 / स्वर्ग और अपवर्ग (मोक्ष) की प्राप्ति अहिंसादि णवाले सद-धर्मका फल है उसे हिंसादि पापरूप यज्ञादिका फल माननेका अभिप्राय विपरीत मिथ्यात्व है 2 / सम्यग्दर्शनादिसे निरपेक्ष देव-पूजा, गुरु-पाद-पूजा आदि रूप विनयसे ही मोक्ष प्राप्त होता है, इस प्रकारका अभिप्राय वैनयिक मिथ्यात्व है 3 / प्रत्यक्ष आदि प्रमाणोंसे ग्रहण किये गये पदार्थका देशान्तर और कालान्तरमें तथैव स्वरूप प्राप्त होनेपर उसका निश्चय हो सकता है। किन्तु वस्तुके स्वरूपका निरूपण करनेवाले, 'मैं आप्त पुरुष हूँ' इस प्रकार के अभिमानसे जलनेवाले और परस्पर विरुद्ध शास्त्रोपदेश करनेवाले पुरुषोंकी अवंचकताके निश्चय न होनेसे 'यह तत्त्व है' और 'यह तत्त्व नहीं है' ऐसा निश्चय करना अशक्य है, इस प्रकारसे उभय कोटिके अवलम्बनरूप अभिप्रायका नाम संशयमिथ्यात्व है 4 / तर्कसे विचार करनेपर जीवादि पदार्थ सिद्ध नहीं होते हैं. अतः सर्व वस्त अज्ञानरूप ही है. ज्ञानरूप कोई वस्त नहीं है. इस प्रकारका अभिनिवेश रखना अज्ञानमिथ्यात्व है 5 / . बुद्धदर्शी (बौद्ध आदि मतवाले) एकान्त मिथ्यात्वी हैं, ब्रह्म (पशुयज्ञ करनेवाले ब्राह्मण आदि) विपरीत मिथ्यात्वी हैं। तापस आदि विनय मिथ्यात्वी हैं। इन्द्र आदि आचार्य संशयमिथ्यात्वी हैं और मस्करी आदि अज्ञानमिथ्यात्वी हैं // 8 // मिथ्यात्वकर्मका वेदन करनेवाला जीव विपरीत श्रद्धानी होता है। जिस प्रकार पित्तज्वरवाले पुरुषको मधुर (मीठा) रस नहीं रुचता है, उसी प्रकार मिथ्यात्वी जीवको सद्-धर्म नहीं रुचता है // 9 // मिथ्यादृष्टि जीव जिन-उपदिष्ट-प्रवचन का श्रद्धान नहीं करता है। किन्तु अन्य. मिथ्यात्वीजनोंके द्वारा उपदिष्ट या अनुपदिष्ट असत्यार्थ तत्त्वोंका श्रद्धान करता है.॥१०॥............ .
SR No.004346
Book TitleTattvasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Siddhantshastri
PublisherSatshrut Seva Sadhna Kendra
Publication Year1981
Total Pages198
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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