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________________ 190 परिशिष्ट-५ तात्त्विकः पक्षपातश्च (योगदृष्टि स. 221) द्रागस्मात्तदर्शनमिषु (षोडशक-१५-१०) दिव्यभोगाभिलाषेण (योगबिन्दु-१५७) देशादिभेदतश्चित्रमिदं (योगबिन्दु-३५७) नैवंविधस्य शस्तं (षोडशक-१०-१५) प्रणिधानं तत्समये (षोडशक-३-७) प्रणिधि-प्रवृत्ति-विघ्नजय (षोडशक-३-६) महाजनो येन गतः स पन्थाः (बृहच्छान्ति) यत्त्वभ्यासातिशयात् (षोडशक-१०-७) यत्रादरोऽस्ति परमः (षोडशक-१०-३) यत्संविग्नजनाचीर्णं ( ) यदाचीर्णमसंविग्नैः ( ) यमनियमासनप्राणायाम (पातं. यो. द. 2-29) लोकमालम्ब्य कर्त्तव्यम् (ज्ञानसार-२३-४) वचनात्मिका प्रवृत्तिः (षोडशक-१०-६) विघ्नजयस्त्रिविधः (षोडशक-३-९) विषं गरोऽननुष्ठानं (योगबिन्दु-१५५) विषं लब्ध्याद्यपेक्षातः (योगबिन्दु-१५६) शास्त्रसन्दर्शितोपायः (योगदृष्टि समु. 5) श्रेयोऽर्थिनो हि भूयांसो (ज्ञानसार-२३-५) सकृदावर्तनादीना (योगबिन्दु-३७०) सामर्थ्ययोगतो या (षोडशक-१५-८) सालम्बनो निरालम्वनश्च (षोडशक-१४-१) सिद्धिस्तत्तद्धर्मस्थाना (षोडशक-३-१०) सिद्धेश्चोत्तरकार्यं (षोडशक-३-११) सुदढप्पयत्तवावारणं (विशे. भा. 3071) स्तोका आर्या अनार्येभ्यः ( ) स्थानमौनध्यानै ... (आव. सूत्र) स्थानोर्णालम्बन (षोडशक-१३-४) हियाहारा मियाहारा (पिण्डनियुक्ति-६४८)
SR No.004345
Book TitleYogvinshika Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorYashovijay Gani, Kirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2007
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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