________________ 124 णमोकारणिज्जुत्ती। [प्राकृत 4. स्पर्शना–निवास स्थानरूप आकाशना चारे बाजुना प्रदेशोने अडकवू ए ज स्पर्शना छ / क्षेत्र अने स्पर्शनामां तफावत एटलो के, क्षेत्रमा फक्त आधारभूत आकाश ज लेवाय छे अने स्पर्शनामां आधारक्षेत्रनी चारे बाजुनो आकाशप्रदेश, जेने अडकीने आधेय रहेलं होय ते लेवाय छ। एटले नमस्कारवान् जीवनी स्पर्शना पण क्षेत्रद्वार पेठे समजवी। 5 5. काळ-नमस्कारनो काळा बे प्रकारे छ। 1 उपयोगथी अने 2 लब्धिथी। उपयोगनी अपेक्षाए नमस्कारनो काळ जघन्यथी अने उत्कृष्टथी अंतर्मुहूर्तनो छ। लब्धिनी अपेक्षाए जघन्य स्थिति अंतर्मुहूर्तनी अने उत्कृष्ट स्थिति छासठ सागरोपमथी कंईक अधिक होय छे, नाना जीवोनी अपेक्षाए सर्वकाळ छे। 6. अंतर-विरहकाळ / एक जीवनी अपेक्षाए नमस्कारनुं अंतर जघन्यथी अंतर्मुहूर्त अने 10 उत्कृष्टथी अर्धपुद्गल परावर्तमां कंईक न्यून एवा अनंतकाळ सुधीनुं छे। नाना जीवोनी अपेक्षाए तो अंतर ज नथी। नाना जीवोनी अपेक्षाए तो विरहकाळ बिलकुल होतो नथी। केमके, विविध जीवोमां कोईने अने कोईने तो नमस्कार होय छ ज / 7. भाग-जीवराशिना केटलामे भागे नमस्कार होय ते भागद्वार / तेनी विचारणामां तो नमस्कार पामेला जीवो सर्व जीवोना अनंतमा. भागे होय छे अने बाकीना एटले नमस्कार नहि पामेला जीवो 15 तेथी (पामेलाथी) अनंतगुणा होय छे / 8. भाव–उपशम, क्षयोपशम अने क्षायिक ए त्रण भावो पैकी नमस्कार क्षयोपशम भावमां होय छे। (केटलाकनुं कहेतुं छे के आ बाहुल्यथी समजवू, कारण के क्षायिक अने औपशमिक भावमां पण होय छे। क्षायिकभावमां श्रेणिक वगेरेने हतो अने उपशमभावमा उपशमश्रेणिमा रहेला जीवोने होय छे / ) 9. अल्पबहुत्व-ओछावत्तापणुं, नमस्कार पामेला अने पामताओD ओछावत्तापणुं आ द्वारथी 20 जणाय छे / नमस्कार पामता होय एवा जीव सर्वथी थोडा होय अने ते करतां नमस्कार पामेला होय ए जीव ओछामां ओछा तेनाथी असंख्यात गुणा होय छे, तथा नमस्कार पामेला होय एवा जीवो जघन्यपद करतां उत्कृष्टपदमा विशेष अधिक होय छे / नमस्कारने पामेला उपशमभाववाळा सौथी अल्प होय छे, क्षयोपशमभाववाळा तेथी विशेष होय छे अने क्षायिक भाववाळा (सिद्धोनी अपेक्षाए) सर्वथी अधिक होय छ / संसारीनी अपेक्षाए क्षायिक भाववाळा करतां क्षयोपशमभाववाळा अधिक होय छे / 9-15, 25 (895-901)