SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 693
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्मतिप्रकरण-नयकाण्ड 1 पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध शुद्ध 143 1 व्यक्तिनाम् व्यक्तीनाम् 152 34 होने से होने से वह 158 3 विषत्वं विषयत्वं 162 10 दौष दोब 166 1 त्वनुमाना त्वमनुमाना 168 13 जाने के जाने से 170 20 तीक्ष्ण तिक्ष्ण 172 26 अप्रमाण प्रमाण अप्रमाण है तत्त्व के 177 31 अवश्यक अवश्य 176 22 तुल्परूप तुल्यरूप 187 15 में अर्थ और अर्थ 191 29 सर्धज्ञा सर्वज्ञा 166 28 के तत्त्व 205 1 तक्तृत्वं वक्त त्वं 217 5 तीतता तीता 237 32 अतिषेध प्रतिषेध 224 23 संबद्ध सम्बन्ध 245 15 प्रतिनियत का प्रतिनियत 29 वह 262 7 जनेतद्वि जने तद्वि 266 26 यह है यह 31 विषय विषय विषय 267 20 'समय' में 'समय' 271 3 शत्त-यव शक्त्यव 21 का भी की भी 22 श्रीषधों को औषधों की 275 24 भान से से भान 276 3 इति इति इति 276 16 नहीं नहीं नहीं 285 22 दूसरे कोई दूसरे किसी 286 15 सदाय समुदाय 284 25 ज्ञान में के ज्ञान में 295 34 आदि) आदि का) 266 6 लणम लक्षणम | पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध 297 24 लोक लोक में 269 6 योग योगे 300 2 इत्येवं भूत इत्येवंभूत 310 25 भिन्न भिन्न भिन्न 312 5 पूर्वक्ष पूर्वपक्ष 314 3 स्यः 322 10 प्रत्क्षत्व प्रत्यक्षत्व 340 32 प्रमाण यमाण. 341 24 तब तब तब तक 346 11 चिदके चिदेक 356 12 ननु / . / ननु 361 ज्ञान पूर्व ज्ञान के पूर्व 372 5 न्नवृत्तः तन्निवृत्तिः 376 13 पूर्व का पूर्व जैसा 380 1 बह्यारम्भ बह्वारम्भ 380 24 ताणं कंताणं कडाणं 381 16 कर्तृत्वादी कर्तृत्ववादी 386 12 क्यों क्योंकि 33 श्लोक इस इस श्लोक 366 16 में में वैचित्र्यसाम्य 18 तभी सभी 362 32 प्रवचन प्रवर्तन पृष्ठ 393 में अन्तिम पंक्ति में 'किन्तु यह' इसके बाद इतना जोड़ना होगा-- [शरीर प्रवर्तन निवर्तनरूप कार्य अन्य शरीर से जीव करता हो ऐसा नहीं है, अतः यहां कार्य शरीरद्रोही हा / यदि कहें कि शरीर के विना भी कार्य का होना यह सिर्फ शरीर के लिये ही दिखाई देता है, अत: शरीर भिन्न पदार्थों का प्रवर्तन-निवर्त्तन शरीर के विना नहीं हो सकता-तो यह ठीक नहीं है क्योंकि हमें तो इतना ही सिद्ध करना है कि शरीर के विना] 395 26 व्याप्ति है व्याप्ति भी है | 403 26 में निवृत्ति वस्तु से निवृत्ति
SR No.004337
Book TitleSammati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorAbhaydevsuri
PublisherMotisha Lalbaug Jain Trust
Publication Year1984
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy