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________________ प्रथमखण्ड-का० १-आत्मविभुत्वे उत्तरपक्षः 571 अथ द्रव्यं क्रियाकारणमन स्पर्शादिगुणः, द्रव्यरहितस्य, क्रियाहेतत्वाऽदर्शनात। न, वेगस्य क्रियाहेतुत्वम् क्रियायाश्च संयोगनिमित्तत्त्वम् तस्य च द्रव्यकारणत्वं तत एव न स्यात् , तथा च 'वेगवत्' इति दृष्टान्ताऽसिद्धिः / अथ द्रव्यस्य तत्कारणत्वे वेगादिरहितस्यापि तत्प्रसक्तिः, स्पर्शादिरहितस्यायस्कान्तस्यापि स्पर्शस्याऽकारणत्वेऽन्यत्र क्रियाहेतुत्वप्रसक्तिः / तद्रहितस्य तस्याऽदृष्टे यं दोष'स्तहि लोहद्रव्यकियोत्पत्तावुभयं दृश्यत इत्युभयं तदस्तु, अविशेषात् / एवं सति एफद्रव्यत्वे सति क्रियाहेतुगुणत्वात्' इति व्यभिचारी हेतुः। - एतेन यदुक्तं परेण-''अदृष्ट मेवायस्कान्तेनाकृष्यमाणलोहदर्शने सुखवत्पुसो निःशल्यत्वेन तक्रियाहेतुः" [ ] इति तन्निरस्तम् , सर्वत्र कार्यकारणभावेऽस्य न्यायस्य समानत्वात प्रदृष्टमेव कारणं स्यात् , यस्य शरीरं सुखं दुखं चोत्पादयति तददृष्टमेव तत्र हेतुरिति न तदारम्भमें क्रिया को उत्पन्न करता है और कोई वैसा गुण अपने आश्रय से संयुक्त द्रव्य में भी क्रिया को उत्पन्न कर सकता है / पदार्थों में शक्ति भिन्न भिन्न प्रकार की होती है अतः ऐसा वैचित्र्य क्रियाहेतु गुणमात्र में मान सकते हैं / फलतः दूसरे प्रकार में आत्मा व्यापक न होने पर भी तद्गत अदृष्ट से दूरस्थ वस्तु से क्रिया उत्पन्न हो सकती है। यदि ऐसा कहें कि प्रयत्न के सिवा अन्य किसी गुण में ऐसा देखा नहीं गया, अत: अद्दष्ट में वसा वैचित्र्य नहीं माना जा सकता ।-तो यह ठीक उत्तर नहीं है। अन्यत्र भी ऐसा देखा जाता है, उदा०-अयस्कान्त नामक द्रव्य का जो भ्रामकस्पर्श ( एक विशेष प्रकार का स्पर्श ) गुण होता है वह एक द्रव्य में ही आश्रित होता है और अपने आश्रय से असंयुक्त लोहद्रव्य में आकर्षणक्रिया का हेतु होता है, जब कि आकर्षक द्रव्य विशेष में अवस्थित स्पर्शगुण अपने आश्रय से संयुक्त ही लोहद्रव्य में क्रिया को उत्पन्न करता है-इस प्रकार स्पर्शगुण में ही प्रयत्न की तरह वैचित्र्य देखा जा सकता है / [क्रिया का कारण अयस्कान्त का स्पर्शादि गुण ही है ] ___यदि यह कहा जाय-अयस्कान्तद्रव्य ही वहां आकर्षण क्रिया का कारण है, तदाश्रित स्पर्शादिगण नहीं, क्योंकि द्रव्य से विनिर्मुक्त केवल स्पर्शादि गुण से क्रिया की उत्पत्ति देखी नहीं जाती।-तो यह ठीक नहीं। कारण, यदि वैसा माना जाय तब तो द्रव्यविनिमुक्त केवल वेग से क्रिया की उत्पत्ति न दिखने से वेग की क्रियाहेतुता का भंग होगा, तथा द्रव्य-विनिर्मुक्त केवल क्रिया से संयोग की उत्पत्ति न दिखने से क्रिया में संयोगनिमित्त कत्व का भंग होगा, और अवयवद्रव्य से से विनिमुक्त केवल संयोग से अवयविद्रव्य की उत्पत्ति न दिखने से संयोग में द्रव्यकारणत्व का भंग होगा। तात्पर्य, सर्वत्र द्रव्य-कारणता की स्थापना होगी और गुण-क्रिया की कारणता का भंग होगा। फलत: 'वेग' का जो आपने दृष्टान्त दिखाया है वह भी हेतुशून्य होने से असिद्ध हो जायेगा / यदि ऐसा कहें कि-द्रव्य को ही यदि क्रियादि का कारण मानेंगे तो वेगादिरहित द्रव्य से भी क्रियादि की उत्पत्ति हो जाने की आपत्ति आती है अतः इस आपत्ति के निवारणार्थ वेगादि को भी हेतु मानना ही पडेगातो इसी तरह हम भी अन्यत्र कह सकते हैं कि स्पर्शगुण को कारण न मान कर केवल अयस्कान्त को कारण मानेंगे तो स्पर्शशून्य अयस्कान्त से भी क्रिया की उत्पत्ति हो जाने की आपत्ति आयेगी। यदि कहें कि-अयस्कान्त कभी स्पर्शशून्य देखा नहीं है इसलिये यह आपत्ति नहीं होगी-तो हमारा कहना यह है कि जब लोहद्रव्य की क्रिया के साथ दोनों (अयस्कान्त और स्पर्शगुण) का अन्वय दिखता है तो
SR No.004337
Book TitleSammati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorAbhaydevsuri
PublisherMotisha Lalbaug Jain Trust
Publication Year1984
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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