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________________ प्रथमखण्ड-का० १-ईश्वरकर्तृत्वे उत्तरपक्षः 507 तज्ज्ञानादेश्च नित्यत्वे तद्विषयत्वमन्तरेणापरस्य चेतनाधिष्ठितत्वस्याभावाद विकलकारणस्य जगतो युगपदुत्पत्तिप्रसंगः / तथाहि-यद् अविकलकारणं तद् भवत्येव, यथाऽन्त्यावस्थाप्राप्तायाः सामग्र्याः अविकलकारणो भवनकुरः, अविकलकारणं च सर्वदा सर्वमीश्वरज्ञानादिहेतुकं जगत् इति युगपद् भवेत् / ___ स्यादेतत्-नेश्वरबुद्धयादिकमेव केवलं कारणम् अपितु धर्माऽधर्मादिसहकारिकारणमपेक्ष्य तत् तत् करोति, निमित्तकारणत्वादीश्वरबुद्धचादेः / अतो धर्मादेः सहकारिकारणस्य वैकल्यादविकलकारणत्वमसिद्धम् / असदेतत् -यदि हि तस्य सहकारिभिः कश्चिदुपकारः क्रियेत तदा स्यात् सहकारिसव्यपेक्षता, यावता नित्यत्वात् परैरनाधेयातिशयस्य न किंचित् तस्य सहकारिभ्यः प्राप्तव्यमस्ति, किमिति तत् तथाभूतान् अनुपकारिणोऽपेक्षेत ? किंच, तेऽपि सहकारिणः किमिति सततं न संनिहिता भवन्ति यदि तज्जन्याः ? 'अपरस्वसंनिधिहेतुप्सहकारिवैकल्यादिति नोत्तरम् तेषामपि तत्संनिधिसहकारिणां तदायत्तोत्पत्तीनां तदैव संनिधिप्रसक्तेः कथमसिद्धता हेतोः ? अथ नित्यत्वे तबुद्धयादिकं सहकारिकारणमुत्पाद्य पश्चादङकुरादिकार्यमुपजनयतीत्यभ्युपगमस्तीपरापरसहकारिजनने एवोपक्षीणशक्तित्वात तस्य नांकुरादिकार्यजननम् / अथाऽतज्जन्या एव धर्माऽधर्मादिसहकारिण अतोऽयमदोषः / नन्वेवं तैरेव 'अचेतनोपादानत्वात्' इति हेतुरनैकान्तिकः स्यात् , अतस्तदायत्तसंनिधयो धर्मादिसहकारिण इति नाऽविकलकारणत्वाख्यो हेतुरसिद्धः। विषयों से स्वविषय ईश्वरज्ञान उत्पन्न होगा तो क्रमवत्ता यानी क्षणिकता उसमें अनायास ही सिद्ध होगी। यदि वह उत्पन्न नहीं होगा तो ईश्वरज्ञान और विषय में कार्यकारणभाव से अतिरिक्त दूसरा कोई सम्बन्ध घटक न होने से ईश्वरीय ज्ञान वस्तु को नहीं जान सकेगा। विषय के विना भी यदि ईश्वरीय ज्ञान मानेंगे तो रज्जू में सर्प के ज्ञान की भांति उसमें स्वीकृत प्रामाण्य की हानि होगी, क्योंकि अतीत-अनागत विषयों का ज्ञान तो निविषयक ही होगा, सविषयक नहीं। इस प्रकार विपरीत शंका में अर्थात् ईश्वरज्ञान में क्षणिकत्व के विना भी क्रमिकज्ञेयविषयता मानने में बाधक प्रमाण की सत्ता सिद्ध है। - [नित्यज्ञान पक्ष में एक साथ जगत् उत्पत्ति का प्रसङ्ग] यदि ईश्वरज्ञानादि नित्य ही है-तो सभी वस्तु में तद्विषयता रहेगी, और तद्विषयता से अन्य कोई चेतनाधिष्ठितत्व नहीं है अत: सारा जगत् एक साथ चेतनाधिष्ठित हो जाने से सारे जगत् की उत्पत्ति एक साथ होने की आपत्ति होगी। देखिये, जिस वस्तु के कारण अविकल यानी संपूर्णतया उपस्थित रहते हैं वह वस्तु अवश्य उत्पन्न होती है। उदा० जब अंकुर की सामग्री अन्त्यावस्था को प्राप्त हो जाती है तब अंकुर अविकलकारणवाला हो जाने से उत्पन्न होता ही है / ईश्वरज्ञानादि हेतुक सारा जगत् भी अविकलकारणवाला ही होता है, अतः एक साथ ही उसकी उत्पत्ति होनी चाहिये। . [ अविकलकारणत्व हेतु में असिद्धिदोष की आशंका ] कदाचित् आप यह कहेंगे कि जगत् का कारण सिर्फ ईश्वर ज्ञानादि ही नहीं है, किन्तु धर्मअधर्म आदि सहकारिकारण को सापेक्ष हो कर ही ईश्वरज्ञानादि जगत् को उत्पन्न करता है, क्योंकि ईश्वर का ज्ञान अनेक निमित्त कारणों में से एक कारण है / अतः जब सहकारिकार णभूत धर्माधर्मादि उपस्थित नहीं रहते तब आपका हेतु अविकलकारणता असिद्ध बन जायेगा, अर्थात् जगत् की एक साथ
SR No.004337
Book TitleSammati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorAbhaydevsuri
PublisherMotisha Lalbaug Jain Trust
Publication Year1984
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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