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________________ सम्मतिप्रकरण-नयकाण्ड 1 नोपलभन्ते' इति प्रर्वागदशिना निश्चेतु शक्यम् / अथात्मसंबधिनीत्यभ्युपगमः, सोऽप्ययुक्तः, प्रात्मसंबधिन्या अनुपलब्धेः परचेतोवृत्तिविशेषैरनेकान्तिकत्वात् / तन्न बाधाभावनिश्चयेऽनुपलब्धिनिमित्तम् / नापि संवादो निमित्तं, भवदभ्युपगमेनानवस्थाप्रसंगस्य प्रतिपादितत्वात् / न च बाधाभावो विशेषः सम्यक्प्रत्ययस्य सम्भवतीति प्रागेव प्रतिपादितम् [पृ 56-2] / कारणदोषाऽभावेऽप्ययमेव न्यायो वक्तव्य इति नाऽसावपि तस्य विशेषः / किं च कारणदोष-बाधकामावयोर्भवदभ्युपगमेन कारणगुण-संवादकप्रत्ययरूपत्वस्य प्रतिपादनात तन्निश्चये तस्य विशेषेऽभ्युपगम्यमाने परतः प्रामाण्यनिश्चयोऽभ्युपगत एव स्यात् , न च सोऽपि युक्तः, अनवस्थादोषस्य भवदभिप्रायेण प्राक् प्रतिपादितत्वात् / ___ यदप्युक्तम्-‘एवं चित्रतुरज्ञान'[पृ. 33] इत्यादि, तत्रैकस्य ज्ञानस्य प्रामाण्यं, पुनरप्रामाण्यं, पुनः प्रामाण्यमित्यवस्थात्रयदर्शनाद् बाधके, तबाधकादौ वाऽवस्थात्रयमाशंकमानस्य कथं परीक्षकस्य नाऽपरापेक्षा येनानवस्था न स्यात् ?! यदप्युक्तम् 'अपेक्षातः' [पृ. 32-10) इत्यादि तदप्यसंगतं, यतो [ बाधकानुपलब्धि के ऊपर नया विकल्पयुग्म ] बाधकाभावनिश्चय के निमित्त कारणरूप में स्वीकृत बाधकानुपलब्धि पर पुनः दो पक्ष ऊठा सकते हैं-(१) क्या वह अनुपलब्धि सर्वसम्बन्धिनी यानी सभी को होने वाली लेते हो या (2) मात्र आत्मसंबंधिनी अर्थात् केवल अपने से ही संबंध रखने वाली ? अगर सर्वसंबंधि अनुपलब्धि का पक्ष किया जाय तो वह अयुक्त है क्योंकि ऐसी अनुपलब्धि ही असिद्ध है / 'सभी प्रमाताओं को यानी किसी भी प्रमाता को बाधक का उपलम्भ नहीं होता' ऐसा निश्चय केवलवर्तमानदर्शी पुरुष नहीं कर सकता। (अथात्मसंबंधि०....) अगर-आत्मसंबंधि अनुपलब्धि निमित्त बनेगी, यह दूसरा पक्ष माना जाय तो वह भी ठीक नहीं है क्योंकि परकीय चित्तवृत्ति में आत्मीय अनुपलब्धि अनैकान्तिक दोषयुक्त है / आशय यह है कि अन्य अन्य पुरुष की चित्तवृत्ति में माया-कपट हो फिर भी हमें उसका उपलम्भ नहीं होता, उसकी अनुपलब्धि होने पर भी माया-कपट के अभाव का निश्चय नहीं हो जाता / तात्पर्य, अनुपलब्धि बाधाभाव का निश्चय करने के लिये निमित्त नहीं बन सकती। [वाधकाभावनिश्चय संवाद से शक्य नहीं है ] ' संवाद भी बाधकाभावनिश्चय का निमित्त नहीं बन सकता, क्योंकि आपके अभिप्राय से तो यहाँ अनवस्था दोष लगने का प्रतिपादन पहले हो चुका है। यह भी पहले कह दिया है कि बाधाभाव सम्यक् बोध का ऐसा कोई स्वरूप विशेष नहीं है जिससे अर्थतथात्वपरिच्छेद उसका कार्य हो सके। 'बाधाभाव सम्यक बोध का विशेष नहीं बन सकता इस बात की सिद्धि जिन में युक्तियों का उपन्यास किया है वे सभी युक्तिओं का उपन्यास 'कारण दोष का अभाव भी सम्यग् बोध का विशेष नहीं है'-इस बात की सिद्धि में करना है, अर्थात् कारणदोष का अभाव भी सत्य बोध का विशेष नहीं बन सकता। ____यह भी ज्ञातव्य है कि आप के पूर्वोक्त अभिप्राय से तो कारणदोष के अभाव का ज्ञान कारण गुणज्ञानरूप है और बाधक के अभाव का ज्ञान संवादविषयक ज्ञानरूप है। अतः प्रामाण्य के निश्चय में यदि बाधाभाव को विशेषरूप में अपेक्षित माना जाय तो फलस्वरूप संवादकज्ञान की ही अपेक्षा सिद्ध होने से आपने परतः प्रामाण्यनिश्चय को ही स्वीकार लिया और वह आपके लिये उचित नहीं है क्योंकि आपने ही पहले उसमें अनवस्था दोष का प्रतिपादन किया है।
SR No.004337
Book TitleSammati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorAbhaydevsuri
PublisherMotisha Lalbaug Jain Trust
Publication Year1984
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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