SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ .. गाथा विषय 17 दर्शनमार्गणामां पक्षु भने अचक्षुदर्शनना मोपथी 120 तवा आदिनां बार गुणस्थानमा क्रमथी 117, 101, 74, 77, 67, 63, 59, 58, 22, 17, 1 अने 1 प्रकृतिना बन्धस्वामित्वर्नु कथन 17 यथाख्यातचारित्रमा ओपथी 1 अने उपशान्तमोह आदि चार गुणस्थानमा क्रमथी 1, 1, 1 अने 0 प्रकृतिना बन्धस्वामि त्वन कथन 18 मनःपर्यवज्ञानमां ओधथी 65 अने प्रमत्तादि सात गुणस्था- . नमा क्रमथी 63, 59, 58, 22, 17, 1 अने 1 प्रकृतिना बन्धस्वामित्वर्नु कथन 18 सामायिक अने छेदोपस्थापनीयमां ओपथी 65 अने प्रमत्तादि - चार गुणस्थानमा क्रमथी 63, 59, 58 अने 22 प्रकृतिना बन्धस्वामित्वन कथन 18 परिहारविशुद्धिमां ओपथी 65 अने छट्ठा तथा सातमा गुण स्थानमा 63 अने 59, 58 प्रकृतिना बन्धस्वामित्वर्नु कथन 18 केवलज्ञान अने केवलदर्शनमा ओपथी तथा तेरमा गुणस्थानमा 1 प्रकृतिना बन्धस्वामित्वर्नु कथन 18 मति, श्रुत, अवधिज्ञान अने अवधिदर्शनमा ओपथी 79 अने अविरतसम्यग्दृष्टि आदि नव गुणस्थाना क्रमथी 75, 67, 63, 59, 58, 22, 17, 1 अने 1 प्रकृतिना बन्ध स्वामित्वनुं कथन - 19 औपशमिकसम्यक्त्वमा पोषथी 75 अने अविरतसम्यग्दृष्टि आदि आठ गुणस्थानमा क्रमथी 75, 66, 62, 58, 58, 12, 17 अने 1 प्रकृतिना बन्धखामित्वर्नु कथन 19 क्षायीपशमिकसम्यक्त्वा ओपथी 79 अने अविरतसम्यग्दृष्टि आदि चार गुणस्थानमा क्रमथी 77, 67, 63 अने 59 58 प्रकृतिना बन्धखामित्वन कथन . 19 क्षायिकसम्यक्त्वमा ओपथी 79 अने अविरतसम्यग्दृष्टि बादि 11 गुणस्थानमा क्रमथी 77, 67, 63, 59-58, 58, 22, 17, 1, 1, 1 अने * प्रकृतिना बन्धस्वामित्वकथन 19 मिध्यादृष्टि, सासादन, मिश्र, देशविरति अने सूक्ष्मसम्पराय
SR No.004334
Book TitleChatvar Karmgranth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraguptasuri
PublisherJain Atmanand Sabha
Publication Year1997
Total Pages260
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy